लिक्विडिटी जोखिम का क्या मतलब है

क्या डेट फंड्स रिस्क फ्री होते हैं?
यह एक गलत धारणा है कि डेट फंड में कोई रिस्क (जोखिम) नहीं होता क्योंकि वे इक्विटीज़ में निवेश नहीं करते। यह बात सच है कि इक्विटी फंड्स के मुकाबले डेट फंड्स में कम जोखिम होता है लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि डेट फंड्स आपको गारंटी देते हैं कि आपकी रकम को कभी कोई घाटा नहीं होगा। स्टॉक मार्केट में निवेश करने वाले इक्विटी फंड्स के मुकाबले डेट फंड्स डेट और मनी मार्केट की सिक्योरिटीज़ में निवेश करते हैं जहाँ अलग-अलग तरह के रिस्क फैक्टर्स होते हैं।
डेट फंड्स में इंटरेस्ट रेट रिस्क, क्रेडिट रिस्क और लिक्विडिटी रिस्क जैसे जोखिम देखने को मिलते हैं जो कि हमारी जानकारी के स्टॉक मार्केट (शेयर बाज़ार) के रिस्क से काफी अलग हैं। हालांकि इन लिक्विडिटी जोखिम का क्या मतलब है रिस्क फैक्टर्स को स्टॉक मार्केट (शेयर बाजार) के आम जोखिम तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन इन्हें पूरी तरह से नजरअंदाज़ भी नहीं किया जा सकता है।
इंटरेस्ट रेट रिस्क ब्याज दरों में बदलाव के कारण उत्पन्न होता है जो उन बॉन्ड्स की कीमतों को प्रभावित करता है जिनमें डेट फंड ने निवेश किया है। क्रेडिट रिस्क तब उत्पन्न होता है जब ऐसी किसी कंपनी में कोई वित्तीय संकट होता है जिसके बॉन्ड्स में डेट फंड ने निवेश किया है क्योंकि इससे ब्याज का भुगतान और उन बॉन्ड्स पर देय मूल राशि बेहद अनिश्चित हो जाती है। लिक्विडिटी रिस्क तब होता है जब डेट सिक्योरिटीज़ का अक्सर कारोबार नहीं होता है और इसलिए फंड को प्रतिकूल परिस्थितियों में इन सिक्योरिटीज़ को मजबूरीवश उनके पोर्टफोलियो में घाटे में बेचना पड़ सकता है। इसलिए इक्विटी फंड्स के मुकाबले डेट फंड्स में निवेश करना अपेक्षाकृत कम जोखिम भरा हो सकता है लेकिन पूरी तरह से रिस्क फ्री नहीं हो सकता।
'लिक्विडिटी रिस्क' क्या है, लिक्विडिटी जोखिम का क्या मतलब है निवेश में क्यों इसे ध्यान रखने की जरूरत है?
जब अपने निवेश को आप अपनी इच्छा से जब चाहे नहीं बेच पाते हैं या इसमें दिक्कत आती है तो लिक्विडिटी जोखिम का क्या मतलब है उस खतरे को लिक्विडिटी रिस्क कहते हैं. पैसे की जरूरत पड़ने पर कभी-कभी तो कम पैसे में आपको अपने इस निवेश को निकलना पड़ता है.
किस तरह के निवेश में लिक्विडिटी कम होती है?
रियल एस्टेट या आर्ट जैसे कुछ निवेश में यह समस्या रहती है. अपनी मर्जी से जब चाहे आप इन्हें बेच नहीं सकते हैं. इस मार्केट का वॉल्यूम बहुत कम होता है. खरीदार ढूंढने के लिए खासी मशक्कत करनी पड़ती है.
क्यों लिक्विडिटी में कमी का सामना करना पड़ता है?
कई कारणों से रिटेल निवेशकों के लिए कॉरपोरेट डेट मार्केट में लिक्विडिटी की कमी आती है. खरीदार बाजार से गायब हो जाते हैं. जो बॉन्ड खरीदने के इच्छुक भी होते हैं, वे इनकी लिक्विडिटी जोखिम का क्या मतलब है कम कीमत देना चाहते हैं.
लॉक-इन अवधि के मामले में क्या हाेता है?
कुछ इंस्ट्रूमेंट में न्यूनतम लॉक-इन अवधि हो सकती है. यानी एक तय समय तक इनमें से पैसा नहीं निकाला जा सकता है. बैंक एफडी और म्यूचुअल फंडों की टैक्स सेविंग स्कीमें (ELSS) इन्हीं में से एक हैं.
क्या शेयर बाजार में 'लिक्विडिटी रिस्क' हाेता है?
शेयर बाजार में काफी ज्यादा लिक्विडिटी होती है. हालांकि, कुछ कंपनियों के शेयरों की ट्रेडिंग रफ्तार में नहीं होती है. इनके साथ भी लिक्विडिटी का जोखिम होता है.
(इस पेज की सामग्री सेंटर फॉर इंवेस्टमेंट एजुकेशन एंड लर्निंग (सीआईईएल) के सौजन्य से. गिरिजा गादरे, आरती भार्गव और लब्धि मेहता का योगदान.)
Web Title : what is liquidity risk in investments what you should know
Hindi News from Economic Times, TIL Network
'लिक्विडिटी रिस्क' क्या है, निवेश में क्यों इसे ध्यान रखने की जरूरत है?
जब अपने निवेश को आप अपनी इच्छा से जब चाहे नहीं बेच पाते हैं या इसमें दिक्कत आती है तो उस खतरे को लिक्विडिटी रिस्क कहते हैं. पैसे की जरूरत पड़ने पर कभी-कभी तो कम पैसे में आपको अपने इस निवेश को निकलना पड़ता है.
रियल एस्टेट या आर्ट जैसे कुछ निवेश में यह समस्या रहती है. अपनी मर्जी से जब चाहे लिक्विडिटी जोखिम का क्या मतलब है आप इन्हें बेच नहीं सकते हैं. इस मार्केट का वॉल्यूम बहुत कम होता है. खरीदार ढूंढने के लिए खासी मशक्कत करनी पड़ती है.
कई कारणों से रिटेल निवेशकों के लिए कॉरपोरेट डेट मार्केट में लिक्विडिटी की कमी आती है. खरीदार बाजार से गायब हो जाते हैं. जो बॉन्ड खरीदने के इच्छुक भी होते हैं, वे इनकी कम कीमत देना चाहते हैं.
कुछ इंस्ट्रूमेंट में न्यूनतम लॉक-इन अवधि हो सकती है. यानी एक तय समय तक इनमें से पैसा नहीं निकाला जा सकता है. बैंक एफडी और म्यूचुअल फंडों की टैक्स सेविंग स्कीमें (ELSS) इन्हीं में से एक हैं.
शेयर बाजार में काफी लिक्विडिटी जोखिम का क्या मतलब है ज्यादा लिक्विडिटी होती है. हालांकि, कुछ कंपनियों के शेयरों की ट्रेडिंग रफ्तार में नहीं होती है. इनके साथ भी लिक्विडिटी का जोखिम होता है.
(इस पेज की सामग्री सेंटर फॉर इंवेस्टमेंट एजुकेशन एंड लर्निंग (सीआईईएल) के सौजन्य से. गिरिजा गादरे, आरती भार्गव और लब्धि मेहता का योगदान.)
लिक्विडिटी जोखिम का क्या मतलब है
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Investment Tips: बाजार के जोखिम से बचाते हैं 'बॉन्ड', जानिए कैसे करें इनमें निवेश और कितना मिलता है रिटर्न
सरकारी और कॉरपोरेट बॉन्ड में निवेश करके स्थिर और सुरक्षित रिटर्न प्राप्त किया जा सकता है.
बॉन्ड कम जोखिम के साथ स्थिर और निश्चित रिटर्न देने वाले विकल्प माने लिक्विडिटी जोखिम का क्या मतलब है जाते हैं. एनएसई ऐप या बॉन्ड प्लेटफार्म के जरिए सरका . अधिक पढ़ें
- News18 हिंदी
- Last Updated : November 21, 2022, 12:27 IST
हाइलाइट्स
बॉन्ड एक डेब्ट इंस्ट्रूमेंट होता हैं जिसका अर्थ प्रतिभूति या ऋणपत्र होता है.
मुख्य रूप से बॉन्ड सरकार और कंपनियों के द्वारा जारी किये जाते हैं.
इनमें एक निश्चित ब्याज दर का भुगतान करने का वादा किया जाता है.
नई दिल्ली. बाजार में उच्च और कम जोखिम से जुड़े निवेश के कई विकल्प उपलब्ध हैं. आपने अक्सर बॉन्ड के बारे में सुना होगा. ये कम जोखिम के साथ स्थिर और निश्चित रिटर्न देने वाले विकल्प माने जाते हैं. महंगाई और अन्य आर्थिक अनिश्चितता के बीच बाजार में जब भी वॉलेटिलिटी बढ़ती है तो निवेशक सरकारी और कॉरपोरेट बॉन्ड में पैसा लगाते हैं.
एनएसई ऐप या बॉन्ड प्लेटफार्म के जरिए सरकारी बॉन्ड में निवेश किया जा सकता है. कूपन वैल्यू, मैच्योरिटी, लिक्विडिटी और अन्य विशेषताओं के साथ बॉन्ड में निवेश कई विकल्प हैं. खास बात यह है कि लिक्विडिटी जोखिम का क्या मतलब है ये सभी जोखिम रहित हैं. आइये समझते हैं बॉन्ड क्या होते हैं, कितने प्रकार के होते हैं और इनमें कैसे निवेश किया जा सकता है.
क्या होते हैं बॉन्ड?
बॉन्ड एक डेब्ट इंस्ट्रूमेंट होता हैं जिसका अर्थ प्रतिभूति या ऋणपत्र होता है. बॉन्ड्स के जरिए निवेशक बॉन्ड जारीकर्ता को लोन उपलब्ध करवाते हैं. इसके बदले में बॉन्ड जारी किया जाता है. इसमें एक निश्चित ब्याज दर का भुगतान करने का वादा किया जाता है. इन जारी किये बॉन्ड्स पर ब्याज दर लिखी होती हैं जिसे कूपन लिक्विडिटी जोखिम का क्या मतलब है रेट भी कहा जाता है.
मुख्य रूप से बॉन्ड सरकार और कंपनियों के द्वारा जारी किये जाते हैं. निवेश के लिहाज से बॉन्ड्स काफी सुरक्षित माने जाते हैं. कंपनी का बॉन्ड धारक को भुगतान करने की प्रथम जिम्मेदारी होती है.
कितने तरह के होते हैं बॉन्ड
फिक्सड रेट बॉन्ड: इनमें निवेश करने पर निवेशक को मैच्योरिटी तक ब्याज की एक निश्चित रकम मिलती है.
फ्लोटिंग रेट बॉन्ड: इसमें इंटरेस्ट रेट बेंचमार्क के अनुसार परिवर्तित होती रहती है. आमतौर पर ये बॉन्ड सरकारों द्वारा जारी किए जाते हैं.
जीरो कूपन बॉन्ड: ऐसे बॉन्ड डिस्काउंट पर जारी किए जाते हैं और इन्हें बॉन्ड होल्डर्स से निश्चित अवधि के बाद वापस खरीदा जाता है. इसमें आने वाला अंतर ही निवेशक की कमाई है.
कन्वर्टिबल बॉन्ड: इसमें ब्याज का भुगतान होता है और मैच्योरिटी पर फेस वैल्यू मिलती है. खास बात है कि इन्हें जारीकर्ता कंपनी द्वारा शेयरों में भी बदला जा सकता है.
कैसे खरीदें बॉन्ड
आप घर बैठे ऑनलाइन डायरेक्ट बॉन्ड खरीद सकते हैं. ऑनलाइन वेबसाइट से बॉन्ड खरीदने पर ये आपके डीमैट अकाउंट में क्रेडिट हो जाते हैं. कॉर्पोरेट बॉन्ड्स स्टॉक एक्सचेंज पर भी ट्रेड के लिए उपलब्ध होते हैं. स्टॉक ब्रोकर के माध्यम से इन्हें खरीदा और बेचा जा सकता है. गवर्नमेंट बॉन्ड्स भी बोली के जरिए ब्रोकर की मदद से खरीदे जा सकते हैं.
निवेशक चाहे तो सीधे बैंक के द्वारा भी बॉन्ड खरीद सकते हैं. इन सब के अलावा जो कंपनी अपने बॉन्ड जारी करती है. उनकी ऑफिशियल वेबसाइट के जरिए भी बॉन्ड की खरीदी की जा सकती है.
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