विदेशी मुद्रा क्यों?

मुद्रा की कमजोर होती स्थिति को संभालने में किसी भी देश के केंद्रीय बैंक का अहम रोल होता है। भारत में यह भूमिका रिजर्व बैंक अॉफ इंडिया की है। वह अपने विदेशी मुद्रा भंडार से और विदेश से डॉलर खरीदकर बाजार में उसकी मांग पूरी करने का प्रयास करता है। इससे डॉलर की कीमतें रुपए के मुकाबले स्थिर करने में कुछ हद तक मदद मिलती है।
आज़ादी से अब तक सिर्फ 1 बार ऐसा हुआ कि रुपया लगातार दो या ज्यादा साल मज़बूत हुआ
10 साल में भारतीय करेंसी के मुकाबले डॉलर 20.22 रुपए तक महंगा हो गया है। अक्टूबर 2008 में रुपया 48.88 प्रति डॉलर के स्तर पर था, जो अब 69.10 के स्तर पर है। जल्द ही इसके 70 के स्तर पर पहुंचने की भी आशंका है। हालांकि रुपए के कमजोर होने का यह ट्रेंड अप्रैल 2016 से जारी है। वैसे आजादी के बाद से अब रुपए के मजबूत और कमजोर होने पर नजर डालें, विदेशी मुद्रा क्यों? तो कुछ और भी चौंकाने वाली जानकारियां सामने आती हैं। यह भी साफ हो जाता है कि इन 70 वर्षों में एक बार ही ऐसा मौका आया है, जब रुपया लगातार दो या ज्यादा बार मजबूत हुआ हो। ऐसा 2008 से 2011 के बीच हुआ। अक्टूबर 2008 में रुपया 48.88 प्रति डॉलर था, जो 2009 में 46.37 के स्तर पर पहुंचा। जनवरी 2010 में रुपए विदेशी मुद्रा क्यों? ने 46.21 के स्तर को छुआ। इसके बाद अप्रैल 2011 में रुपया एक बार फिर मजबूत होकर 44.17 के स्तर पर पहुंच गया।
अगर नहीं थामा गया घटता विदेशी मुद्रा भंडार, तो श्रीलंका जैसी हो सकती है भारत की स्थिति, AIBEA ने जताई चिंता
Edited By: Akash Mishra @Akash25100607
Updated on: September 29, 2022 18:39 IST
Photo:FILE Representational Image
AIBEA: भारत के घटते विदेशी मुद्रा भंडार पर चिंता जताते हुए अखिल भारतीय बैंक कर्मचारी संघ (AIBEA) के एक शीर्ष पदाधिकारी ने बृहस्पतिवार को दावा किया कि अगर इस समस्या की अनदेखी की जाती रही, तो आगे चलकर देश को पड़ोसी श्रीलंका जैसे भीषण आर्थिक संकट का सामना करना पड़ सकता है। एआईबीईए के महासचिव सीएच वेंकटचलम ने इंदौर विदेशी मुद्रा क्यों? में संगठन की केंद्रीय समिति की बैठक के बाद कहा, ‘‘सरकार की गलत आर्थिक नीतियों के कारण देश का विदेशी मुद्रा भंडार कम होता जा रहा है। हमारा आयात लगातार बढ़ रहा है, जबकि निर्यात घटता जा रहा है।’’
रुपये में गिरावट
डॉलर इंडेक्स में उछाल से रुपये में गिरावट का दबाव बनता है. यूक्रेन युद्ध के बाद से रुपये की कीमत में 8.9 फीसदी की गिरावट आई है. वैसे, समकक्ष देशों की मुद्राओं की तुलना में रुपया बेहतर हाल में है. लेकिन यह स्थिति उसकी गिरावट को रोकने के लिए रिजर्व बैंक द्वारा डॉलर की बिक्री के कारण है.
ग्राफिक्स: रमनदीप कौर/ दिप्रिंट
यूक्रेन युद्ध शुरू होने विदेशी मुद्रा क्यों? के बाद से विदेशी मुद्रा भंडार में करीब 86 अरब डॉलर की कमी आई है. जुलाई में रिजर्व बैंक ने 19 अरब डॉलर बेची. डॉलर की वास्तविक बिक्री के अलावा, डॉलर के तुलना में यूरो और येन जैसी मुद्राओं में गिरावट से भी रिजर्व पर असर पड़ता है.
कितना रिजर्व पर्याप्त है
अधिकतर देश विदेशी मुद्रा भंडार को अपनी अर्थनीति का महत्वपूर्ण हिस्सा मानते हैं. बाजार में उथलपुथल का सामना करने, मुद्रा में भरोसा कायम करने, विनिमय दर को प्रभावित करने जैसे कई कारणों से उन्हें रोक कर रखा जाता है.
अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोश (आइएमएफ) ने कई शोधपत्रों के जरिए बताया है कि रिजर्व की पर्याप्तता को मापने के तीन पारंपरिक पैमाने हैं. जिन देशों में कैपिटल एकाउंट्स पर नियंत्रण रखा जाता है उनमें आयात को प्रासंगिक पैमाना माना जाता है. यह बताता है कि झटके के मद्देनजर आयात के लिए कितने समय तक वित्त उपलब्ध कराया जा सकता है. विकासशील विदेशी मुद्रा क्यों? देशों में तीन महीने तक आयात करने लायक रिजर्व को पर्याप्त मानने का नियम चलता है. लेकिन वित्तीय समेकीकरण में वृद्धि के कारण इस पैमाने को अब कम उपयोगी माना जाता है.
उभरती अर्थव्यवस्थाओं में दूसरा पैमाना बकाया अल्पकालिक बाहरी कर्ज की 100 फीसदी कवरेज है. यह खासकर उन देशों के लिए लागू है जो दूसरे देशों के साथ बड़े अल्पकालिक लेन-देन करते हैं. तीसरा पैमाना है व्यापक धन में रिजर्व के अनुपात का. इसका उपयोग पूंजी के बाहर जाने से उभरे संकट में रिजर्व की पर्याप्तता का आकलन करने के लिए किया जाता है. हाल के संकट के साथ स्थानीय डिपॉजिट के भी बाहर जाने से संकट पैदा हुआ. इस जोखिम से बचने के लिए रिजर्व व्यापक धन (जनता के पास और डिपॉजिट में मुद्रा) के 20 प्रतिशत के बराबर होना चाहिए.
भारत के पास पर्याप्त रिजर्व
भारत में रिजर्व अब तक 3 महीने से ज्यादा के आयात बिल भरने लायक रहता आया है. अक्तूबर 2021 में रिजर्व 642 अरब डॉलर के शिखर पर था और 16 महीने के आयात खर्च को पूरा विदेशी मुद्रा क्यों? कर सकता था. अब यह 545.6 अरब डॉलर पर आ गया है और 9 महीने के आयात खर्च को पूरा कर सकता है. विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट के के बीच आयात में वृद्धि ने आयात कवर को घटा दिया है. हालांकि फिलहाल रिजर्व तीन महीने के आयात कवर की सीमा से ज्यादा है, लेकिन रिजर्व की पर्याप्तता का आकलन उथलपुथल को रोकने के लिए रिजर्व बैंक की पहल से किया जाएगा.
उपरोक्त दूसरे पैमाने के हिसाब से भारत का रिजर्व अल्पकालिक बाहरी कर्ज से ज्यादा है. हाल के अनुमानों के मुताबिक, अल्पकालिक बाहरी कर्ज उसके रिजर्व के अनुपात में आधे से भी कम के बराबर है. रिजर्व व्यापक धन के 20 प्रतिशत की सीमा से ठीक ऊपर है. रिजर्व बैंक के एक अध्ययन के मुताबिक, ऐसे भी समय आए जब रिजर्व इस सीमा से नीचे था.
विदेशी मुद्रा भंडार : कम हुआ देश का खजाना, विदेशी निवेशक निकाल रहे पैसा, यह है वजह
नई दिल्ली । देश का विदेशी मुद्रा भंडार (foreign exchange reserves) 26 नवंबर को समाप्त सप्ताह में 2.713 अरब डॉलर घटकर 637.687 अरब डॉलर रह गया. रिजर्व बैंक की ओर से जारी विदेशी मुद्रा क्यों? आंकड़े के मुताबिक, इससे पिछले सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार 28.9 करोड़ डॉलर बढ़कर 640.401 अरब डॉलर हो गया था.
3 सितंबर को रिकॉर्ड लेवल पर पहुंचा था रिजर्व
इसके अलावा तीन सितंबर, 2021 को समाप्त सप्ताह में मुद्रा भंडार 642.453 अरब डॉलर के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया विदेशी मुद्रा क्यों? था. शुक्रवार को जारी किये गये भारतीय रिजर्व बैंक के साप्ताहिक आंकड़ों में बताया गया है कि 26 नवंबर को समाप्त समीक्षाधीन सप्ताह में विदेशीमुद्रा भंडार में विदेशी मुद्रा क्यों? गिरावट आने की वजह विदेशीमुद्रा आस्तियाों में गिरावट आना था जो कुल मुद्राभंडार का अहम हिस्सा होता है.
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RBI ने जारी किए आंकड़े
रिजर्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार, सप्ताह के दौरान एफसीए 1.048 अरब डॉलर घटकर 574.664 अरब डॉलर रह गया. डॉलर में अभिव्यक्त किये जाने वाले विदेशीमुद्रा आस्तियों में विदेशीमुद्रा भंडार में रखे यूरो, पौंड और येन जैसे गैर-अमेरिकी मुद्रा के घट बढ़ को भी समाहित किया जाता है.
गोल्ड रिजर्व में भी आई गिरावट
इस दौरान स्वर्ण भंडार का मूल्य 1.566 अरब डॉलर घटकर 38.825 अरब डॉलर रह गया. समीक्षाधीन सप्ताह में अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) के पास विशेष आहरण अधिकार 7.4 करोड़ डॉलर घटकर 19.036 अरब डॉलर रह गया. अंतररराष्ट्रीय मुद्राकोष में देश का मुद्रा भंडार 2.5 करोड़ डॉलर घटकर 5.162 अरब डॉलर रह गया.
जानें भारत में क्यों नहीं होंगे श्रीलंका और पाकिस्तान जैसे आर्थिक हालत
नई दिल्ली: आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने शनिवार को कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ाने में अच्छा काम किया है। उन्होंने कहा कि देश को श्रीलंका और पाकिस्तान जैसी आर्थिक समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ेगा।
पूर्व गर्वनर ने कहा कि हमारे पास पर्याप्त विदेशी मुद्रा भंडार है। रिजर्व बैंक ने रिजर्व बढ़ाने में अच्छा काम किया है। हमें श्रीलंका और पाकिस्तान जैसी समस्या नहीं है। हमारे विदेशी कर्ज भी कम हैं।
विदेशी मुद्रा में गिरावट
समाचार एजेंसी एएनआई के अनुसार आरबीआई के ताजा आंकड़ों के मुताबिक 22 जुलाई को समाप्त सप्ताह में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 571.56 अरब डॉलर रहा। 22 जुलाई को समाप्त सप्ताह के दौरान विदेशी मुद्रा भंडार में 1.152 अरब डॉलर की गिरावट दर्ज की गई।