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क्या यह प्रणाली आपकी गाढ़ी कमाई के लायक है

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अमेरिकी-भारतीय सैन्य सहयोग से बढ़ी चिंता

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देश के किसी भी कंप्यूटर की निगरानी करने वाले केंद्र सरकार के आदेश की सुप्रीम कोर्ट करेगा न्यायिक समीक्षा

देश के किसी भी कंप्यूटर की निगरानी करने वाले केंद्र सरकार के आदेश की सुप्रीम कोर्ट करेगा न्यायिक समीक्षा

किसी भी कम्प्यूटर प्रणाली को इंटरसेप्ट करने या उनकी निगरानी के लिए 10 केंद्रीय एजेंसियों को अधिकृत करने संबंधी केंद्र सरकार की अधिसूचना को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह केंद्र के फैसले की न्यायिक समीक्षा करेगा. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर छह सप्ताह में जवाब मांगा है. पिछले दिनों केंद्र सरकार द्वारा 10 एजेंसियों को देश के सभी कंप्यूटर की निगरानी और डाटा की क्या यह प्रणाली आपकी गाढ़ी कमाई के लायक है जांच का अधिकार देने पर मचे बवाल के बीच अब गृह मंत्रालय ने इस पर सफाई दी थी. मंत्रालय का कहना है कि सरकार ने किसी कम्प्यूटर से जानकारी निकालने (इंटरसेप्ट) के लिए किसी भी एजेंसी को ‘पूर्ण शक्ति' नहीं दी है. हर बार पूर्व मंजूरी की जरूरत होगी. एजेंसियों को इस तरह की कार्रवाई के दौरान वर्तमान नियम कानून का कड़ाई से पालन करना होगा. कोई नया नियम-कानून, नई प्रक्रिया, नई एजेंसी, पूर्ण शक्ति या पूर्ण अधिकार जैसा कुछ नहीं है. सब चीजें पुरानी ही हैं. गृह मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक ‘वर्तमान नियम शब्दश: वही हैं. यहां तक कि इसमें कॉमा या फुल स्टॉप भी नहीं बदला गया है'.

“जल्द ही हो सकती है राहुल गांधी की ताजपोशी!”

21 अगस्त 2011
वार्ता

लंदन। ब्रिटेन के प्रमुख साप्ताहिक पत्र ‘इकोनॉमिस्ट’ ने कहा है कि सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन ने भारत के प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार को हिलाकर रख दिया है तथा अब संभावना है कि कांग्रेस के महासचिव राहुल गांधी की ताजपोशी क्या यह प्रणाली आपकी गाढ़ी कमाई के लायक है जल्दी हो जाए।

अन्ना हजारे के आन्दोलन के बारे में प्रकाशित रिपोर्ट में ‘इकोनॉमिस्ट’ ने यह भी कहा है कि सोनिया गांधी की बीमारी के कारण सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी की मुश्किलें और बढ़ गई हैं। पत्र के अनुसार इस बारे में संदेह बना हुआ है कि श्रीमती गांधी कब तक स्वदेश लौट सकेंगी। पत्र का मानना है कि हो सकता है कि राहुल गांधी को शीघ्र ही बड़ी जिम्मेदारी दे दी जाए।

‘इकोनॉमिस्ट’ की रिपोर्ट में कहा गया क्या यह प्रणाली आपकी गाढ़ी कमाई के लायक है कि कांग्रेस का मानना है कि अन्ना का आन्दोलन शहरों तक सीमित है तथा इसमें लोकतांत्रिक प्रणाली की कमजोरियों से क्षुब्ध छात्र एवं रोमांटिक लोग शामिल हैं। देश की सरकार चुनने में अलप शिक्षित और ग्रामीण मतदाताओं की अधिक भूमिका होती है तथा उन पर मंहगाई, रोजगार और गांधी परिवार के करिश्माई व्यक्तित्व का ज्यादा असर होता है।

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दूरदृष्टा, जनचेतना के अग्रदूत, वैचारिक स्वतंत्रता के पुरोधा एवं समाजसेवी सरदार दयालसिंह मजीठिया ने 2 फरवरी, 1881 को लाहौर (अब पाकिस्तान) से ‘द ट्रिब्यून’ का प्रकाशन शुरू किया। विभाजन के बाद लाहौर से शिमला व अंबाला होते हुए यह समाचार पत्र अब चंडीगढ़ से प्रकाशित हो रहा है।

‘द ट्रिब्यून’ के सहयोगी प्रकाशनों के रूप में 15 अगस्त, 1978 को स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर दैनिक ट्रिब्यून व पंजाबी ट्रिब्यून की शुरुआत हुई। द ट्रिब्यून प्रकाशन समूह का संचालन एक ट्रस्ट द्वारा किया जाता है।

हमें दूरदर्शी ट्रस्टियों डॉ. तुलसीदास (प्रेसीडेंट), न्यायमूर्ति डी. के. महाजन, लेफ्टिनेंट जनरल पी. एस. ज्ञानी, एच. आर. भाटिया, डॉ. एम. एस. रंधावा तथा तत्कालीन प्रधान संपादक प्रेम भाटिया का भावपूर्ण स्मरण करना जरूरी लगता है, जिनके प्रयासों से दैनिक ट्रिब्यून अस्तित्व में आया।

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