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मोमबत्ती का उदाहरण क्या है

मोमबत्ती का उदाहरण क्या है
अब तक किसी ने शिकायत नहीं दर्ज कराई

विधानसभा चुनाव में मोमबत्ती 29 रुपए, अब 9 रुपए में: पंचायत चुनाव ने खोली असेम्बली इलेक्शन में धांधली की पोल, झाड़ू तक में हुई लूट

बिहार के मधेपुरा जिले में विधानसभा चुनाव से लेकर पंचायत चुनाव के बीच सामान की आपूर्ति के लिए होने वाले टेंडर में बड़ा झोल सामने आ रहा है। दरअसल, बिहार में विधानसभा चुनाव नवंबर 2020 में हुआ। अभी पंचायत चुनाव चल रहा है। महज एक साल में टेंडर में शामिल सामानों के दर 40 से 50 प्रतिशत तक घट गए है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है प्रशासनिक अधिकारी और सप्लायर की गठजोड़ के आधार पर चुनाव के दौरान कितने बड़े पैमाने पर सरकारी राशि का गोलमाल हुआ होगा।

अभी चल रहे पंचायत चुनाव में मतदान के दौरान जो सामग्री मतदान कर्मियों को उपलब्ध कराई जा रही है, वह टेंडर के मुताबिक सप्लाई की जाने वाले सामान के गुणवत्ता और मात्रा के अनुसार नहीं है। कई सामान इतनी कम मात्रा में आपूर्ति की जा रही है कि मतदान की प्रक्रिया शुरू होने के कुछ ही घंटे के बाद ही वह समाप्त हो जाती हैं। लिहाजा ग्रामीण क्षेत्रों में कर्मी गांव वालों के घर से ही कभी गोंद, कभी पिन आदि मंगवाकर काम चलाते हैं।

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Last Updated on 06/04/2020 by Sarvan Kumar

5 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आह्वान पर देश के करोड़ों लोगों ने 9 बजे 9 मिनट तक सांकेतिक प्रकाश फैलाया। यह सांकेतिक प्रकाश उन वीर कोरोना फाइटर्स के हौसला अफजाई के लिए था जो मोमबत्ती का उदाहरण क्या है अपनी जान की परवाह नहीं करते हुए कोरोना संक्रमित लोगों की जान बचाने में लगे हुए हैं। मोमबत्ती का उदाहरण क्या है हमारे देश के कुछ लोग मोदी विरोध में पूरी तरह से अंधे हो चुके हैं। तर्क या यूं कहिए कुतर्क देकर इस सांकेतिक प्रकाश उत्सव की भी खामियां निकालकर विरोध में उतर आएं है।

इन लोगों की कुतर्क बातों को सुनकर हंसी, गुस्सा, और उदासी जैसे कई भाव एक साथ मन में उभर आता है। वे कहते हैं कि पूरी दुनिया संकट में है और हम उत्सव मना रहे हैं। विरोध में अंधे हुए ये लोग मोदी को गाली देते हैं, पुतले जलाते हैं और पूछते हैं -क्या दिया जलाने से कोरोना भाग जाएगा। यह आयोजन खुशी का नहीं था यह कोरोना भगाने के लिए या कोरोना को डराने के लिए नहीं था। यह आयोजन पुलिस, मीडिया , चिकित्सक और ऐसे दूसरे कर्मचारियों के लिए था जो घर से बाहर निकलकर हमारी अलग -अलग तरीकों से मदद करने में लगें हैं। यह आयोजन ठीक उसी तरह से था जैसे युद्ध के समय हम अपने जवानों के लिए तालियाँ बजाकर या कविता पाठ कर उनके हौसला अफजाई करतें हैं। यह उस तरह से भी है जैसे कोई दुर्घटना हो जाने पर हम मोमबत्ती जलाकर सांकेतिक प्रकाश फैलाते हैं। क्या हम ऐसा खुशी से करते हैं, यह हम जागरूकता फैलाने और सरकार तक अपनी माँग पहुंचाने के लिए करतें हैं। हम अपनें घरों में बंद हैं और हम अपनी ही मदद कर रहे हैं। जरा उन लोगों के बारे में सोचिए जो घर से बाहर हैं और अलग अलग तरह से हमारी मदद कर रहें है। अस्पतालों में काम करने वाले डाक्टर, नर्स, और दूसरे कई मेडिकल स्टाफ अपनी जान की परवाह न करते हुए कोरोना मरीजों के देखभाल करनें में लगें हैं। अभी दिल्ली से एक खबर आई है की 100 से ज्यादा मेडिकल स्टाफ को क्वारनटीन किया गया है।

फ्रायड चिकेन खिलाने वाले KFC ने कैसे रखा रेस्टॉरेंट इंडस्ट्री में कदम… उसमें अलग क्या है?

फ्रायड चिकेन खिलाने वाले KFC ने कैसे रखा रेस्टॉरेंट इंडस्ट्री में कदम. उसमें अलग क्या है?

इंसान एक बार फेल होता है तो उसकी हिम्मत टूट जाती है और फिर से खड़ा होने में वक्त लग जाता है. लेकिन कोई 100 बार फेल हो जाए तो क्या होगा? और कोई 1000 बार से ज्यादा फेल हो जाए तो क्या स्थिति होगी? ऐसे उदाहरण न के बराबर होंगे, जब इतनी बार फेल होने के बाद कोई तन कर खड़ा होगा और सफलता के झंडे गाड़ देगा. बात हो रही है, केएफसी (KFC) के फाउंडर कर्नल सैंडर्स की. रिटायरमेंट की उम्र में लोग जहां आराम करने की सोचते हैं, उस उम्र में सैंडर्स ने केएफसी की शुरुआत की.

आप शायद केएफसी का पूरा नाम नहीं जानते होंगे! KFC का फुल फॉर्म है- केंटकी फ्राइड चिकन (Kentucky Fried Chicken). आज की ब्रांड स्टोरी में बात करेंगे केएफसी की और इसकी नई शुरुआत की.

मुफलिसी में गुजरा बचपन

कर्नल सैंडर्स का बचपन मुफलिसी में गुजरा. 7वीं के बाद उन्हें पढ़ाई छोड़नी पड़ी. तरह-तरह के काम करने पड़े बड़े होकर सेना में भर्ती हुए, फिर निकाल दिए गए. फिर रेलवे में नौकरी करने लगे. फिर किसी विवाद के कारण रेलवे भी छोड़ दिया. कभी इंश्योरेंस पॉलिसी बेची तो कभी क्रेडिट कार्ड और कभी टायर. लैंप बनाने और मोमबत्ती का उदाहरण क्या है नाव चलाने जैसे काम भी किए. लेकिन कहीं सफलता नहीं मिली.

वो चिकन बहुत शानदार बनाते थे. 1930 में तब उन्होंने केंटकी के कार्बिन में एक गैस स्टेशन खरीदा तो यात्रियों ने उनसे रेस्टॉरेंट खोलने का भी आग्रह किया. ऐसे में उन्होंने खास रेसिपी वाले चिकन बनाकर बेचना शुरू किया. काम चल निकला. 1950 में एक बार केंटकी के गवर्नर वहां पहुंचे और चिकन खाया तो उन्हें बहुत अच्छा लगा. खुश होकर उन्होंने हारलैंड सैंडर्स को कर्नल की उपाधि दे दी. हारलैंड तब से कर्नल सैंडर्स हो गए. केएफसी के लोगो के साथ जो तस्वीर दिखती है, वो उन्हीं मोमबत्ती का उदाहरण क्या है कर्नल सैंडर्स की है.

रेस्टॉरेंट इंडस्ट्री में कदम

अब बात करते हैं केएफसी इंडिया की और उसकी एक मोमबत्ती का उदाहरण क्या है नई शुरुआत की. केएफसी इंडिया के जनरल मैनेजर मोक्ष चोपड़ा ने देश के प्रमुख शहरों में केएफसी स्मार्ट रेस्टोरेंट्स की लॉन्चिंग का एलान किया. गुरुग्राम, हैदराबाद, चेन्नई और बेंगलुरु में इसकी शुरुआत हो चुकी है, जबकि कई अन्य शहरों में भी इसे खोला जाएगा. कंपनी के जीएम के अनुसार, रेस्टॉरेंट में अत्याधुनिक सेल्फ-ऑर्डरिंग कियोस्क लगाए गए हैं और भुगतान के लिए कई विकल्प हैं. यानी ग्राहक अपनी पसंद का ऑर्डर करें और अपनी पसंद के तरीके से पेमेंट कर दें.

केएफसी स्मार्ट रेस्टोरेंट में ऑर्डर के लिए पारंपरिक कांउटर की बजाय कियोस्क लगाए गए हैं. पेमेंट के कई विकल्प हैं. जैसे- पेटीएम, मोबाइल पेमेंट के लिए क्यूआर कोड. ग्राहक अपने स्मार्टफोन पर केएफसी स्मार्ट एप द्वारा टेबल पर बैठेे-बैठे ऑर्डर कर सकते हैं. ग्राहकों को दिक्कत न हो, इसलिए मदद के लिए एक स्टाफ भी होगा. पिक-अप एरिया में CDS यानी कस्टमर डिस्प्ले स्क्रीन पर ग्राहक आसानी से ऑर्डर की ट्रैकिंग कर सकेंगे. रेस्टोरेंट में राइडर्स के लिए वेटिंग एरिया भी बनाए गए हैं.

भीतर-बाहर का अंधेरा

भीतर-बाहर का अंधेरा

जापान में जो झेन परंपरा पनपी, उसमें गुरु और शिष्य के अद्भुत संवाद हैं। वही उनका साहित्य है या यूं कहें दर्शन है। झेन गुरु ज्यादा शब्दों में विश्वास नहीं करते, वे उतना मोमबत्ती का उदाहरण क्या है ही बोलते हैं, जितना शिष्य को जगाने के लिए काफी होगा। गहरे मौन से निकले हुए उनके शब्दों के अर्थ भी बेबूझ होते हैं। इसलिए ये संवाद विश्व साहित्य में शामिल नहीं हुए। किंतु उन्हें समझना खुद को जानने के लिए बहुत उपयोगी होगा। ओशो ने इन कहानियों का मर्म खोला है, क्योंकि इनमें मानव मन की गुत्थियों को सुलझाने के राज छिपे हैं।
तोकुसान रयूतन के साथ झेन का अध्ययन कर रहा था। रयूतन एक श्रेष्ठ सद्गुरु थे। एक रात तोकुुसान रयूतन के पास आया और उनसे कई बौद्धिक सवाल पूछे। तंग आकर गुरु ने कहा, बहुत रात हो गई है। अब तुम विश्राम क्यों नहीं करते? तोकुसान ने गुरु को प्रणाम किया और बाहर जाने के लिए परदा खोला। जैसे ही उसने बाहर देखा, उसने मुंह से निकला, बाहर घुप्प अंधेरा है। तोकुसान की मदद करने के लिए रयूतन ने एक मोमबत्ती जलाई, लेकिन जैसे ही तोकुसान ने उसे उठाया, रयूतन ने फूंक मारकर उसे बुझा दिया। उसी क्षण तोकुसान का मन विलीन हो मोमबत्ती का उदाहरण क्या है गया।
इस कहानी का आशय है, आप झेन का अध्ययन नहीं कर सकते, क्योंकि झेन यानी ध्यान; ध्यान की पढ़ाई क्या करेंगे? ध्यान को तो जीना होता है। झेन गुरु का हरेक शब्द अर्थपूर्ण होता है। उदाहरण के लिए, शिष्य ने सुबह नहीं, बल्कि रात के अंधेरे में प्रश्न पूछा। सुबह आप तरोताजा होते हैं, रात में थके हुए होते हैं। रात एक प्रतीक है। इसका मतलब मोमबत्ती का उदाहरण क्या है है कि आप मन के अंधेेरे में हैं और उत्तर खोज रहे हैं। विचारों के ऊहापोह में इतने थक गए हैं, इतने असमंजस में हैं कि उत्तर भी मिलेगा तो समझ में नहीं आएगा। मन आत्मा का अंधकार है, आत्मा की रात है, लेकिन आप इस मन पर कितना भरोसा करते हैं! और इसने आपको आज तक वादों के सिवाय कुछ नहीं दिया।
गुरु ने कहा, रात हो गई है। विश्राम क्यों नहीं करते? क्या अभी भी मन में उलझे रहना है? लेकिन तोकुसान ने गलत समझा, क्योंकि इतने सारे सवालों से भरा आदमी ज्ञानी का रहस्यमय जवाब नहीं समझ सकता। वह बाहरी रात के बारे में सोचता रहा, लेकिन गुरु भीतर की रात की बात मोमबत्ती का उदाहरण क्या है कर रहे थे और शिष्य ने सोचा कि हां, रात बहुत हो गई है, जबकि गुरु कह रहे थे- जागो, जागने का समय हो गया है। उसे जगाने के लिए गुरु ने प्रकाश को बुझा दिया। इस कृत्य से तोकुसान को झटका लगा और वह सजग हो गया। इधर बाहर की रोशनी चली गई और उधर उसके मन में उजाला हो गया। गुरु का काम पूरा हो गया।
अमृत साधना

आंखों की रोशनी जाने के बाद नौकरी चली गई, फिर भी हिम्मत नहीं हारे लोन ले कर खड़ी की करोड़ों की कम्पनी

Sunrise Candles founder Bhavesh Bhatia: हर वक़्त हमें यही मोमबत्ती का उदाहरण क्या है लगता है कि हमारी मुश्किलें सबसे बड़ी है, लेकिन दूसरों को देखने के बाद यह एहसास होता है कि उसके आगे हमारी मुश्किलें कुछ भी नहीं है। भवेश भाटिया के बारे में जानने के बाद आपको भी ऐसा लगेगा कि कैसे इन्होंने इन मुश्किलों को पार कर आगे बढ़ा।

भवेश भाटिया (Bhavesh Bhatia) जिनके जीवन में सिर्फ़ मुश्किलें ही मुश्किलें आई। भावेश जब 23 वर्ष के थे तभी इनके आंखों की रोशनी पूरी तरह से चली गई। वैसे इन्हें बचपन से ही कम दिखाई देता था। लेकिन आगे चलकर Retina Muscular Deterioration नाम की बीमारी के कारण पूरी तरह से इनकी आंखों की रोशनी चली गई। भवेश उस समय एक होटल मैनेजर के रूप में काम कर रहे थे।

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