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क्यों सरकार विदेशी बॉन्ड जारी करती है?

क्यों सरकार विदेशी बॉन्ड जारी करती है?
इस बारे में कई लोगों ने आरटीआई भी डाली है। एक आरटीआई के जवाब से पता चलता क्यों सरकार विदेशी बॉन्ड जारी करती है? है कि भारतीय रिजर्व बैंक और चुनाव आयोग ने इस योजना पर आपत्तियां जताई थीं, लेकिन सरकार द्वारा इसे खारिज कर दिया गया था। आरबीआई ने 30 जनवरी, 2017 को लिखे एक पत्र में कहा था कि यह योजना पारदर्शी नहीं है और मनी लांड्रिंग बिल को कमजोर करती है और वैश्विक प्रथाओं के खिलाफ है। इससे केंद्रीय बैंकिंग कानून के मूलभूत सिद्धांतों पर ही खतरा उत्पन्न हो जाएगा। चुनाव आयोग ने दानदाताओं के नामों को उजागर न करने और घाटे में चल रही कंपनियों को बॉन्‍ड खरीदने की अनुमति देने को लेकर चिंता जताई थी।

जानें, किस तरह रुपये में लगातार हो रही गिरावट पर अंकुश लगा सकती है सरकार

नई दिल्ली/टीम डिजिटल। डॉलर के मुकाबले पिछले काफी समय से रुपये की स्थिति कमजोर होती जा रही है। लगातार रुपए में हो रही गिरावट से रिजर्व बैंक सहित सरकार की चिंताएं भी बढ़ गई हैं। मंगलवार को डॉलर के मुकाबले रुपया 72.67 के स्तर पर पहुंच गया था। बीचे कई समये से भारतीय मुद्रा में गिरावट के सात कई नए रिकॉर्ज बन गए है। फिलहाल ये अपने सबसे निचले स्तर पर है। इससे देश पर भारी असर पड़ रहा है चलिए जानते है इससे देश को क्या नुकसान हो रहा है और इसका समाधान क्या है।

रुपया के गिरने से हो रही है ये समस्या
एक्सपोर्ट की रफ्तार में कमी आई है लेकिन कच्चे तेल का इंपोर्ट लगातार बढ़ रहा है जिस वजह से हमे अधिक डॉलर का भुगतान करना पड़ रहा है। एक साल के अंदर ही इंपोर्ट और एक्सपोर्ट के बीच का अंतर चालू खाता घाटा 5 साल के उच्चतम स्तर पर है। आरबीआई के पास फिलहाल बड़े पैमाने पर डॉलर हैं लेकिन रुपये की गिरावट को रोकने का असर विदेशी मुद्रा भंडार पर पड़ रहा है। अप्रैल में ये 426 अरब डॉलर था जो अब घटकर 400 डॉलर रह गया है।

10 साल मेच्योरिटी पर 8.5% सालाना ब्याज, ‘AA’ रेटिंग; लखनऊ नगर निगम बॉन्ड के बारे में जानें सबकुछ

10 साल मेच्योरिटी पर 8.5% सालाना ब्याज, ‘AA’ रेटिंग; लखनऊ नगर निगम बॉन्ड के बारे में जानें सबकुछ

Lucknow Municipal Corporation Bonds: लखनऊ नगर निगम (LMC) के बॉन्ड की लिस्टिंग बीएसई पर हो गई है.

Lucknow Municipal Corporation Bonds: लखनऊ नगर निगम (LMC) के बॉन्ड की लिस्टिंग बीएसई पर हो गई है. लिस्टिंग के मौके पर यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ भी मौजूद थे. उत्तर प्रदेश सरकार क्यों सरकार विदेशी बॉन्ड जारी करती है? ने इस बॉन्ड के जरिए 200 करोड़ रुपये जुटाए हैं. इस बॉन्ड को रेटिंग एजेंसियों से अच्छी रेटिंग मिली है. यह बीएसई बांड प्लेटफॉर्म पर अबतक का 8वां सबसे सफल नगर निगम बॉन्ड है. लखनऊ नगर निगम बॉन्ड जारी करने वाला उत्तर भारत का पहला नगर निगम बन गया है. जानते हैं कि क्या है यह नगर निगम बॉन्ड और इसमें निवेश करने का क्या है फायदा….

5 फीसदी सालाना ब्याज

लखनऊ नगर निगम के बॉन्ड की मेच्योरिटी 10 साल की है. इसमें निवेश करने पर निवेशकों को 8.5 फीसदी सालाना ब्याज मिलेगा. बीएसई बॉन्ड प्लेटफॉर्म पर नगर निगम को 450 करोड़ के लिए 21 बिड मिली जो इश्यू साइज की 4.5 गुना है. यह जानकारी बीएसई ने दी है. बीएसई के अनुसार यह उसके प्लेटफॉर्म पर अबतक का 8वां सबसे सफल नगर निगम बॉन्ड है.

लखनऊ नगर निगम बॉन्ड को रेटिंग एजेंसियों से अच्छी रेटिंग मिली है. इंडिया क्यों सरकार विदेशी बॉन्ड जारी करती है? रेंटिंग्स ने इस बॉन्ड के लिए ‘AA’ रेटिंग दी है. वहीं ब्रिकवर्क ने इसे ‘AA (CE)’ रेटिंग दी है. माना जा रहा है कि इस बॉन्ड के जरिए निवेश जुटाने में भी मदद मिलेगी.

अबतक 11 ऐसे बॉन्ड जारी हुए

अभी तक कुल 11 नगर निगम बॉन्ड से करीब 3690 करोड़ रुपये जुटाये गये हैं. इनमें से बीएसई बॉन्ड प्लेटफॉर्म का योगदान 3,175 करोड़ रुपये है. इसके पहले अमरावती (2000 करोड़ रुपये), विशाखापत्तनम (80 करोड़ रुपये), अहमदाबाद (200 करोड़ रुपये), सूरत (200 करोड़ रुपये), भोपाल (175 करोड़ रुपये), इंदौर (140 करोड़ रुपये), पुणे (495 करोड़ रुपये), हैदराबाद (200 करोड़ रुपये) नगर निगम बॉन्ड हैं.

बॉन्ड किसी कंपनी या सरकार के लिए पैसा जुटाने का एक माध्यम है. बॉन्ड से जुटाए गया पैसा कर्ज की श्रेणी में आता है. कंपनी जहां अपने कारोबार के विस्तार के लिए बॉन्ड से पैसा जुटाती हैं तो केंद्र या राज्य सकार भी अपने खर्च के लिए समय-समय पर बॉन्ड जारी करती हैं. इसमें बॉन्ड जारी करने वाली संस्था एक निश्चित समय के लिए रकम उधार लेती है और निश्चित रिटर्न यानी ब्याज देने के साथ मूलधन वापस करने की गारंटी देती है. यह नि​वेशकों के लिए निश्चित आय का एक निवेश साधन होता है.

क्या होते हैं म्युनिसिपल बॉन्ड

म्युनिसिपल या नगर निगम बॉन्ड शहरी स्थानीय निकायों द्वारा जारी किए जाते हैं. शहर में विकास कामों को जारी रखने के लिए धन की जरूरत इससे पूरी की जाती है. इस तरह से बॉन्ड जारी कर नगर निगम पैसा जुटाते हैं और उसे शहर के बुनियाद ढांचा विकास जैसे कार्यों पर खर्च करते हैं. मार्केट रेगुलेटर सेबी के अनुसार सिर्फ वही नगर निगम ऐसे बॉन्ड जारी कर सकते हैं, जिनका नेटवर्थ लगातार 3 वित्त वर्ष तक निगेटिव न रहा हो. पिछले एक साल में उन्होंने कोई लोन डिफाल्ट न किया हो.

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शेयर बाजार से क्या है संबंध?

निवेशक सर्वाधिक मुनाफे के लिए सबसे ज्यादा रिटर्न देने वाले फाइनेंशियल इंस्ट्रूमेंट में निवेश करना पसंद करते हैं. इक्विटी यानी शेयर मार्केट में रिस्क के साथ ही रिटर्न की भी अच्छी संभावना होती है. वहीं डेट या बॉन्ड मार्केट में रिस्क नहीं या काफी कम होता है और निवेशक एक तय रिटर्न प्राप्त करते हैं. कोरोना से उबरने के माहौल में निवेशकों द्वारा शेयर बाजार में बड़ा भरोसा जताया गया है.

कुछ जानकारों के अनुसार इस ट्रेंड के कारण बाजार अपने सही वैल्यूएशन से काफी आगे निकल गया है. बॉन्ड मार्केट में यील्ड के बढ़ने से भी इस तर्क को ज्यादा जोर मिला है. इससे पता चलता है कि निवेशक बॉन्ड और अन्य मार्केट में भरोसा ना जताते हुए इक्विटी की तरफ बेहताशा आए हैं. साथ ही अब बांड्स में अच्छे रिटर्न के कारण निवेशक शेयर बाजार से डेब्ट मार्केट की तरफ जा सकते हैं. इस तरह बॉन्ड यील्ड और इक्विटी मार्केट में विपरीत संबंध होता है.

आने वालों दिनों में इसका क्या होगा बाजार पर असर?

विकसित देशों जैसे US, जापान में बॉन्ड यील्ड बढ़ने से विदेशी निवेशकों (FII) द्वारा भारत जैसे बाजारों से पैसे निकाले जा सकते हैं. बाजार की हालिया तेजी क्यों सरकार विदेशी बॉन्ड जारी करती है? में FII निवेश का बड़ा योगदान रहा है. हाल में भारत का 10 वर्षों का बॉन्ड यील्ड भी 5.76% से 6.20% पे आ गया है. विदेशी निवेशक अगर भारतीय बाजार में रहते हुए भी अगर अपने पैसे को डेट मार्केट में डालते हैं तब भी शेयर बाजार पर नकारात्मक असर दिखेगा.

2013 में US में ‘टेपर टैंटरम’ की घटना का उदाहरण देकर भी लोग इस स्थिति को बताने की कोशिश कर रहे हैं. इस दौरान US में ट्रेजरी यील्ड में बढ़ोतरी का मार्केट पर बड़ा नकारात्मक प्रभाव हुआ था.

RBI से क्या करें उम्मीद?

रिजर्व बैंक लांग टर्म बॉन्ड यील्ड को 6% के पास रखने की कोशिश करेगा. बॉन्ड यील्ड के बढ़ने से सरकार के बाजार से पैसे जुटाने की योजना पर बड़ा असर पड़ेगा. बजट में इस वर्ष और आने वाले वर्षों में सरकार द्वारा बॉन्ड मार्केट से बड़ी रकम उठाने का ऐलान किया गया है. हालांकि इस समस्या से निपटने के लिए रिजर्व बैंक द्वारा ब्याज दरों संबंधी बदलाव की संभावना कम है. RBI ओपन मार्केट ऑपरेशन और ऑपरेशन ट्विस्ट की सहायता से बॉन्ड यील्ड में कटौती की कोशिश कर सकता है. ऑपरेशन ट्विस्ट के अंतर्गत केंद्रीय बैंक बिना लिक्विडिटी को प्रभावित किए लांग टर्म बॉन्ड यील्ड में कमी लाने की कोशिश करता है.

निवेशकों के लिए सरकारी बॉन्ड मार्केट खुलने का मतलब, आपके लिए क्या?

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Gold bond scheme: अगर नहीं खरीदना चाहते हैं ज्वैलरी और करना चाहते हैं सोने में निवेश तो आज से मिल रहा है सस्ते में सोना खरीदने का शानदार मौका

Published: December 28, 2020 11:16 AM IST

Gold Price Today

Gold bond scheme: अगर आप सोने की ज्वैलरी नहीं खरीदना चाहते हैं और आपका मन सोने में निवेश का है तो आज से आपको मिल रहा है सोने में निवेश का शानदार मौका. सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड स्कीम में 28 दिसंबर 2020 से निवेश खुल गया है. केंद्र सरकार की स्कीम सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड में निवेश कर आप डिजिटल गोल्ड खरीद सकते हैं.

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बता दें, चालू वित्त वर्ष के लिए सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड की यह नौवीं सब्सक्रिप्शन सीरीज है. आप 28 दिसंबर 2020 से 1 जनवरी 2021 तक इस स्कीम में निवेश कर सस्ते में डिजिटली सोना खरीद सकते हैं.

यह स्कीम भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) पेश करती है. आठवीं सीरीज के मुकाबले इस बार आपको सोने में कम भाव पर निवेश करने का मौका मिल रहा है. आठवीं सीरीज में सोने का भाव 5177 रुपये प्रति ग्राम तय किया गया था.

सरकारी गोल्‍ड बॉन्ड की कीमत बाजार में चल रहे सोने के भाव से कम होती है. बॉन्ड के रूप में आप सोने में न्यूनतम एक ग्राम और अधिकतम चार किलो तक निवेश कर सकते हैं. इस पर टैक्‍स छूट भी मिलती है. गोल्ड बांड स्‍कीम पर बैंक से लोन भी लिया जा सकता है.

बॉन्‍ड पर सालाना ढाई फीसदी का रिटर्न मिलता है. गोल्ड बॉन्ड में किसी तरह की धोखाधड़ी और अशुद्धता की संभावना नहीं होती. गोल्ड बॉन्ड 8 साल के बाद मैच्योर होते हैं. 8 साल के बाद इसे भुनाकर पैसा निकाला जा सकता है. निवेश के पांच साल के बाद इससे बाहर निकलने का विकल्प भी होता है.

क्यों हो रहा है चुनावी बॉन्ड को लेकर हंगामा, क्या होता क्यों सरकार विदेशी बॉन्ड जारी करती है? है इलेक्टोरल बॉन्ड

सदन के शीतकालीन सत्र के दौरान गुरुवार को कांग्रेस ने इलेक्टोरल बॉन्ड का मुद्दा उठाया। कॉन्ग्रेस ने इस मुद्दे को दोनों सदनों में उठाया। इसकी वजह से राज्यसभा की कार्रवाई एक घंटे के लिए स्थगित करनी पड़ी। लोकसभा में कांग्रेस की तरफ से मनीष तिवारी ने इस मुद्दे को उठाया और कहा कि ये बॉन्ड जारी करके सरकारी भ्रष्टाचार को स्वीकृति दे दी गई है। उन्होंने ये तक कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड सियासत में पूंजीपतियों का दखल हैं। भारतीय जनता पार्टी ने इसका पलटवार करते हुए कहा है कि विपक्षी दल इसे बेवजह का मुद्दा बना रहे हैं।

इस मुद्दे को पूरा जानने से पहले ये जान लेते हैं कि आखिर क्या है इलेक्टोरल बॉन्ड। दरअसल, किसी भी राजनीतिक दल को मिलने वाले चंदे को इलेक्टोरल बॉन्ड कहा जाता क्यों सरकार विदेशी बॉन्ड जारी करती है? है। वैसे तो ये एक तरह का नोट ही होता है, जो एक हजार, 10 हजार, 10 लाख और एक करोड़ तक का आता है। कोई भी भारतीय इसे स्टेट बैंक ऑफ इंडिया से खरीद कर राजनीतिक क्यों सरकार विदेशी बॉन्ड जारी करती है? पार्टी को चंदा दे सकता है। इन बॉन्ड्स को जनप्रतिनिधित्व कानून-1951 की धारा 29ए के तहत पंजीकृत वे राजनीतिक पार्टियां ही भुना सकती हैं, जिन्होंने पिछले आम चुनाव या विधानसभा चुनाव में कम से कम एक फीसदी क्यों सरकार विदेशी बॉन्ड जारी करती है? वोट हासिल किए हों। चुनाव आयोग द्वारा सत्यापित बैंक खाते में ही इस धन को जमा किया जा सकता है। इलेक्टोरल बॉन्ड 15 दिनों के लिए वैध रहते हैं केवल उस अवधि के दौरान ही अपनी पार्टी के अधिकृत बैंक खाते में ट्रांसफर किया जा सकता है। इसके बाद पार्टी उस बॉन्ड को कैश करा सकती है।

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