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लिक्विडिटी जोखिम का क्या मतलब है

लिक्विडिटी जोखिम का क्या मतलब है
लिक्विड फंड में 91 दिन तक मेच्योरिटी पीरियड यानी छोटी अवधि के लिए भी निवेश किया जा सकता है.

लिक्विड फंड और बनेगा सेफ, जानें छोटी अवधि के लिए क्यों है निवेश का बेहतर विकल्प

लिक्विड फंड में 91 दिन तक मेच्योरिटी पीरियड यानी छोटी अवधि के लिए भी निवेश किया जा सकता है.

लिक्विड फंड और बनेगा सेफ, जानें छोटी अवधि के लिए क्यों है निवेश का बेहतर विकल्प

लिक्विड फंड में 91 दिन तक मेच्योरिटी पीरियड यानी छोटी अवधि के लिए भी निवेश किया जा सकता है.

Liquid Fund, लिक्विड फंड, Better Option For Short Term Invest, Safe Option, Stable Return, Beeter Than bank savings

लिक्विड फंड में 91 दिन तक मेच्योरिटी पीरियड यानी छोटी अवधि के लिए भी निवेश किया जा सकता है.

IL&FS लिक्विडिटी क्राइसिस के बाद आमतौर पर सेफ माने जाने वाले लिक्विड फंड को लेकर निवेशकों में कुछ आशंका बढ़ गई है. लेकिन लिक्विड फंड के निवेशकों के लिए अच्छी खबर है. मार्केट रेग्युलेटर सेबी लिक्विड फंड को और सुरक्षित बनाने के लिए नए नियम लाने जा रही है. सेबी निवेशकों को क्रेडिट रिस्क से बचाना चाहता है. रिपोर्ट के अनुसार अफंडों को अब 30 दिन या इससे ज्यादा दिनों में मेच्योर होने वाले सभी इंस्ट्रूमेंट को अनिवार्य रूप से मार्क-टू-मार्केट (एमटीएम) करना पड़ सकता है. वहीं, लॉक-इन पीरियड भी शुरू हो सकता है.

Mutual Funds SIP: एसआईपी में पहली बार करने जा रहे हैं निवेश? बेहतर रिटर्न के लिए इन 5 बातों का जरूर रखें ध्यान

क्या है लिक्विड फंड

लिक्विड फंड डेट म्यूचुअल फंड हैं, जो गवर्नमेंट सिक्युरिटीज, सर्टिफिकेट ऑफ डिपॉजिट, ट्रेजरी बिल्स, कमर्शियल पेपर्स और दूसरे डेट इंस्टू्मेंट्स में निवेश करते हैं. ये ऐसे फंड होते हैं, जिनमें 91 दिन तक मेच्योरिटी पीरियड यानी छोटी अवधि के लिए भी निवेश किया जा सकता है. इनमें जोखिम भी कम होता है. लिक्विड फंड का दूसरा नाम है कैश फंड और इसका मकसद है – ज्यादा लिक्विडिटी, कम जोखिम और स्थिर रिटर्न.

किसके लिए है बेहतर

अगर आपके पास खाली कैश पड़ें हैं, जिसका इस्तेमाल आपको 3 से 4 महीने बाद करना है तो कैश को बैंक में लिक्विडिटी जोखिम का क्या मतलब है जमा करने की बजाए लिक्विड फंड योजनाओं में निवेश किया जा सकता है. इनमें बैंक की सेविंग्स अकाउंट से ज्यादा रिटर्न मिल रहा है. वहीं, अगर आपको अचानक से कहीं लाभ हो या बोनस मिले तो भी आप इसे लिक्विड फंड में निवेश कर सकते हैं. लिक्विड फंड में आमतौर पर 1 दिन से 3 महीने के लिए निवेश कर सकते हैं.

बेस्ट रिटर्न वाले फंड

बड़ौदा पॉयोनियर लिक्विड Reg(G)

1 साल का रिटर्न : 7.4 फीसदी

3 साल का रिटर्न : 7.31 फीसदी

5 साल का रिटर्न : 7.92 फीसदी

Axis लिक्विड फंड (G)

1 साल का रिटर्न : 7.32 फीसदी

3 साल का रिटर्न : 7.26 फीसदी

5 साल का रिटर्न : 7.88 फीसदी

BOI Axa लिक्विड फंड Reg(G)

1 साल का रिटर्न : 7.32 फीसदी

3 साल का रिटर्न : 7.24 फीसदी

5 साल का रिटर्न : 7.85 फीसदी

HSBC कैश फंड (G)

1 साल का रिटर्न : 7.32 फीसदी

3 साल का रिटर्न : 7.22 फीसदी

5 साल का रिटर्न : 7.84 फीसदी

लिक्विड फंडों के लाभ

लिक्विड फंडों में में आमतौर पर 1 दिन से 3 महीने के लिए निवेश कर सकते हैं. इन स्कीम में निवेश के अगले दिन पैसा निकाला जा सकता है, यानी यह सेविंग्स अकाउंट की तरह काम करता है. इनमें लिक्विडिटी की समस्या नहीं है. लिक्विड फंड सेफ माने जाते हैं क्योंकि ये शॉर्ट टर्म के लिए बॉन्डों में निवेश करते हैं. लिक्विड फंडों पर ब्‍याज दर के उतार-चढ़ाव का जोखिम सबसे कम होता है क्‍योंकि प्राथमिक रूप से ये अल्‍पावधि की मेच्‍योरिटी वाले फिक्‍स्‍ड इनकम सिक्‍युरिटीज में निवेश करते हैं. वहीं, निवेशकों को इनमें बैंक के फिक्स्ड डिपॉजिट के जैसा ब्याज मिलता है.

ऐसे चुनें अच्छा फंड

फाइनेंशियल एडवाइजर फर्म बीपीएन फिनकैप के डायरेक्‍टर एके निगम के अनुसार लिक्विड फंड के रिटर्न में ज्‍यादा असमानता नहीं होती है क्‍योंकि सभी लिक्विड फंड एक ही तरह की सिक्‍युरिटीज में निवेश करते हैं. हालांकि, जब आप लिक्विड फंड में निवेश का निर्णय कर लेते हैं तो यह जरूर देखिए कि जिस लिक्विड फंड में आप निवेश करने का मन बना चुके हैं उसके फंड की साइज क्‍या है यानि उसका कॉर्पस कितना है और फंड हाउस का इतिहास कैसा रहा है.

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लिक्विड फंड और बनेगा सेफ, जानें छोटी अवधि के लिए क्यों है निवेश का बेहतर विकल्प

लिक्विड फंड में 91 दिन तक मेच्योरिटी पीरियड यानी छोटी अवधि के लिए भी निवेश किया जा सकता है.

लिक्विड फंड और बनेगा सेफ, जानें छोटी अवधि के लिए क्यों है निवेश का बेहतर विकल्प

लिक्विड फंड में 91 दिन तक मेच्योरिटी पीरियड यानी छोटी अवधि के लिए भी निवेश किया जा सकता है.

Liquid Fund, लिक्विड फंड, Better Option For Short Term Invest, Safe Option, Stable Return, Beeter Than bank savings

लिक्विड फंड में 91 दिन तक मेच्योरिटी पीरियड यानी छोटी अवधि के लिए भी निवेश किया जा सकता है.

IL&FS लिक्विडिटी क्राइसिस के बाद आमतौर पर सेफ माने जाने वाले लिक्विड फंड को लेकर निवेशकों में कुछ आशंका बढ़ गई है. लेकिन लिक्विड फंड के निवेशकों के लिए अच्छी खबर है. मार्केट रेग्युलेटर सेबी लिक्विड लिक्विडिटी जोखिम का क्या मतलब है फंड को और सुरक्षित बनाने के लिए नए नियम लाने जा रही है. सेबी निवेशकों को क्रेडिट रिस्क से बचाना चाहता है. रिपोर्ट के अनुसार अफंडों को अब 30 दिन या इससे ज्यादा दिनों में मेच्योर होने वाले सभी इंस्ट्रूमेंट को अनिवार्य रूप से मार्क-टू-मार्केट (एमटीएम) करना पड़ सकता है. वहीं, लॉक-इन पीरियड भी शुरू हो सकता है.

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क्या है लिक्विड फंड

लिक्विड फंड डेट म्यूचुअल फंड हैं, जो गवर्नमेंट सिक्युरिटीज, सर्टिफिकेट ऑफ डिपॉजिट, ट्रेजरी बिल्स, कमर्शियल पेपर्स और दूसरे डेट इंस्टू्मेंट्स में निवेश करते हैं. ये ऐसे फंड होते हैं, जिनमें 91 दिन तक मेच्योरिटी पीरियड यानी छोटी अवधि के लिए भी निवेश किया जा सकता है. इनमें जोखिम भी कम होता है. लिक्विड फंड का दूसरा नाम है कैश फंड और इसका मकसद है – ज्यादा लिक्विडिटी, कम जोखिम और स्थिर रिटर्न.

किसके लिए है बेहतर

अगर आपके पास खाली कैश पड़ें हैं, जिसका इस्तेमाल आपको 3 से 4 महीने बाद करना है तो कैश को बैंक में जमा करने की बजाए लिक्विड फंड योजनाओं में निवेश किया जा सकता है. इनमें बैंक की सेविंग्स अकाउंट से ज्यादा रिटर्न मिल रहा है. वहीं, अगर आपको अचानक से कहीं लाभ हो या बोनस मिले तो भी आप इसे लिक्विड फंड में निवेश कर सकते हैं. लिक्विड फंड में आमतौर पर 1 दिन से 3 महीने के लिए निवेश कर सकते हैं.

बेस्ट रिटर्न वाले फंड

बड़ौदा पॉयोनियर लिक्विड Reg(G)

1 साल का रिटर्न : 7.4 फीसदी

3 साल का रिटर्न : 7.31 फीसदी

5 साल का रिटर्न : 7.92 फीसदी

Axis लिक्विड फंड (G)

1 साल का रिटर्न : 7.32 फीसदी

3 साल का रिटर्न : 7.26 फीसदी

5 साल का रिटर्न : 7.88 फीसदी

BOI Axa लिक्विड फंड Reg(G)

1 साल का रिटर्न : 7.32 फीसदी

3 साल का रिटर्न : 7.24 फीसदी

5 साल का रिटर्न : 7.85 फीसदी

HSBC कैश फंड (G)

1 साल का रिटर्न : 7.32 फीसदी

3 साल का रिटर्न : 7.22 फीसदी

5 साल का रिटर्न : 7.84 फीसदी

लिक्विड फंडों के लाभ

लिक्विड फंडों में में आमतौर पर 1 दिन से 3 महीने के लिए निवेश कर सकते हैं. इन स्कीम में निवेश के अगले दिन पैसा निकाला जा सकता है, यानी यह सेविंग्स अकाउंट की तरह काम करता है. इनमें लिक्विडिटी की समस्या नहीं लिक्विडिटी जोखिम का क्या मतलब है है. लिक्विड फंड सेफ माने जाते हैं क्योंकि ये शॉर्ट टर्म के लिए बॉन्डों में निवेश करते हैं. लिक्विड फंडों पर ब्‍याज दर के उतार-चढ़ाव का जोखिम सबसे कम होता है क्‍योंकि प्राथमिक रूप से ये अल्‍पावधि की मेच्‍योरिटी वाले फिक्‍स्‍ड इनकम सिक्‍युरिटीज में निवेश करते हैं. वहीं, निवेशकों को इनमें बैंक के फिक्स्ड डिपॉजिट के जैसा ब्याज मिलता है.

ऐसे चुनें अच्छा फंड

फाइनेंशियल एडवाइजर फर्म बीपीएन फिनकैप के डायरेक्‍टर एके निगम के अनुसार लिक्विड फंड के लिक्विडिटी जोखिम का क्या मतलब है रिटर्न में ज्‍यादा असमानता नहीं होती है क्‍योंकि सभी लिक्विड फंड एक ही तरह की सिक्‍युरिटीज में निवेश करते हैं. हालांकि, जब आप लिक्विड फंड में निवेश का निर्णय कर लेते हैं तो यह जरूर देखिए कि जिस लिक्विड लिक्विडिटी जोखिम का क्या मतलब है फंड में आप निवेश करने का मन बना चुके हैं उसके फंड की साइज क्‍या है यानि उसका कॉर्पस कितना है और फंड हाउस का इतिहास कैसा रहा है.

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Investment: ब्याज दरें बढ़ने के बाद बैंकों के एफडी हुए आकर्षक, इनमें जोखिम भी कम

लगभग सभी सरकारी और निजी बैंकों ने हाल में FD पर ब्याज दरें बढ़ाई हैं। निवेश के लिए सोना और प्रॉपर्टी जैसे विकल्प भी हैं लेकिन एक तो उनके लिए ज्यादा रकम चाहिए और दूसरा FD की तरह उन पर रिटर्न फिक्स्ड नहीं होता है।

नई दिल्ली, एस.के. सिंह। दशहरा और दीपावली के खर्च के बाद भी अगर आपके पास पैसे बच गए हैं और कहीं निवेश करना चाहते हैं, तो फिक्स्ड डिपॉजिट (FD) अच्छा विकल्प हैं। लगभग सभी सरकारी और निजी बैंकों ने हाल में FD पर ब्याज दरें बढ़ाई हैं। निवेश के लिए सोना और प्रॉपर्टी जैसे विकल्प भी हैं, लेकिन एक तो उनके लिए ज्यादा रकम चाहिए और दूसरा, FD की तरह उन पर रिटर्न फिक्स्ड नहीं होता है। संभव है कि आपकी जरूरत के समय सोने के दाम कम हों। कंपनियों ने भी फिक्स्ड डिपॉजिट (कॉरपोरेट एफडी) पर ब्याज बढ़ाया है, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि यह उनके लिए है जो जोखिम ले सकते हैं।

ओवरडोज की वजह से कुछ एंटीबायोटिक ने असर करना बंद कर दिया है

सर्टिफाइड फाइनेंशियल प्लानर (CFP) जितेंद्र सोलंकी के अनुसार, “प्रॉपर्टी में बड़े निवेश की जरूरत होती है। उसकी तुलना एफडी या सोने में निवेश से नहीं की जा सकती। एफडी अक्सर शॉर्ट टर्म के लिए इस्तेमाल होता है और रियल एस्टेट शॉर्ट टर्म का निवेश नहीं है। सोने में निवेश आपके जोखिम को कम करता है, लेकिन यह यह आपके पोर्टफोलियो में 5 से 10 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए। शॉर्ट टर्म में निवेश के लिए एफडी ही बेहतर है।”

ठगी या फ्रॉड के ज्यादातर मामलों में देखा गया है कि ठग कमजोर पासवर्ड को निशाना बनाते हैं।

आर्क प्राइमरी एडवाइजर्स के डायरेक्टर और CFP हेमंत बेनीवाल का भी कहना है कि सोना निवेश के लिए नहीं, हेजिंग के तौर पर ठीक है। यह आपको बड़े नुकसान से बचाता है। हमें इस बात को भी ध्यान में रखना होगा कि इसके दाम में उतार-चढ़ाव होते रहते हैं। बेनीवाल के अनुसार अगर कोई लंबे समय के लिए सोने में निवेश करना चाहता है तो सॉवरेन गोल्ड बांड बेहतर विकल्प है। उनका कहना है कि ऐसे इन्वेस्टर जो जोखिम नहीं लेना चाहते, वे अभी लॉन्ग टर्म के लिए एफडी ले सकते हैं। उनके लिए यह अच्छा समय है।

सरकारी बैंकों के एफडी ज्यादा आकर्षक

महंगाई को नियंत्रित करने के लिए रिजर्व बैंक इस साल मई से अब तक चार बार में रेपो रेट 1.9% बढ़ा चुका है। इससे लोन तो महंगे हुए ही हैं, जमा पर मिलने वाला ब्याज भी बढ़ा है। अभी तक की बढ़ोतरी के बाद सरकारी बैंकों के एफडी निजी बैंकों की तुलना में ज्यादा आकर्षक लग रहे हैं। बड़े बैंकों की बात करें तो एक साल तक की मैच्योरिटी और दो करोड़ रुपये से कम की एफडी पर सरकारी बैंक घरेलू जमाकर्ताओं को निजी बैंकों से अधिक ब्याज दे रहे हैं। वरिष्ठ नागरिकों के लिए ज्यादातर बैंकों के एफडी रेट सामान्य जमाकर्ताओं की तुलना में 0.50% ज्यादा हैं।

एफडी पर ब्याज दरों का बढ़ना क्या आगे भी जारी रहेगा, मौजूदा माहौल में निवेशकों को क्या करना चाहिए, कॉरपोरेट एफडी में पैसा लगाना चाहिए या नहीं, एफडी से जुड़ी इन अहम बातों को सवाल-जवाब के जरिए समझते हैं।

माना जा रहा है कि रिजर्व बैंक रेपो रेट और बढ़ा सकता है, तो क्या एफडी पर भी रेट बढ़ेंगे?

इन्वेस्टमेंट एडवाइजर और गुडमनीइंग के फाउंडर मणिकरन सिंघल के अनुसार इसकी संभावना तो है। आरबीआई के रेपो रेट बढ़ाने का मकसद लिक्विडिटी कम करना होता है। महंगाई कम करने के लिए वह रेट बढ़ा रहा है, ताकि लोग खर्च कम करें और डिपॉजिट में ज्यादा रकम डालें। निवेशक एफडी तभी करेगा जब उसे ब्याज ज्यादा मिले।

लेकिन सोलंकी के अनुसार अब लिक्विडिटी जोखिम का क्या मतलब है ब्याज दर बहुत ज्यादा बढ़ने की संभावना नहीं है। जरूरी नहीं कि रेपो रेट बढ़ने पर हर बार बैंक एफडी पर भी ब्याज बढ़ाएं। यह जरूर है कि अगर रिजर्व बैंक लगातार दो-तीन तिमाही तक रेपो रेट बढ़ाता है लिक्विडिटी जोखिम का क्या मतलब है तो बैंक भी एफडी पर ब्याज बढ़ाएंगे। यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि बैंक के पास लिक्विडिटी की क्या स्थिति है। अगर लिक्विडिटी है तो बैंक ब्याज नहीं भी बढ़ा सकते हैं। हाल में बैंकों ने एफडी पर जो ब्याज दरें बढ़ाईं, उसका बड़ा कारण यह था कि उनके पास लिक्विडिटी कम हो गई थी। उन्हें पैसे की जरूरत थी।

क्या निवेशकों को एफडी पर ब्याज और बढ़ने का इंतजार करना चाहिए?

सोलंकी का कहना है कि अगर किसी को एफडी में निवेश करना है तो वह अभी कर सकता है। क्योंकि यह कोई नहीं जानता कि आगे बैंक रेट कितना बढ़ाएंगे या ऐसा करेंगे भी या नहीं। बेनीवाल ‘सिस्टमेटिक अप्रोच’ की सलाह देते हैं। उनका मानना है कि ब्याज दरें जितनी बढ़नी होंगी, अगले छह महीने में बढ़ जाएंगी। इसलिए छह महीने तक आप हर महीने थोड़ी-थोड़ी रकम की एफडी कर सकते हैं।

सिंघल का भी कहना है कि निवेशकों को इंतजार नहीं करना चाहिए। अगर आगे ब्याज 0.25% बढ़ भी गया तो कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा। वे टैक्स के पहलू पर भी विचार करने की सलाह देते हैं, “एफडी टैक्सेबल इंस्ट्रूमेंट है। आप जिस टैक्स ब्रैकेट में हैं उसके हिसाब से टैक्स लगेगा। निवेशक लंबी अवधि (कम से कम तीन साल) के फिक्स्ड मैच्योरिटी वाले म्यूचुअल फंड का विकल्प चुन सकते हैं। वहां रिटर्न की गारंटी तो नहीं होती, लेकिन एफडी के बराबर ब्याज मिल ही जाता है। उनमें इंडेक्सेशन का फायदा मिलता है, जिससे टैक्स का भार कम हो जाता है।”

अभी एफडी ले ली। आगे रेट बढ़ने पर क्या पुरानी एफडी तोड़कर नई एफडी लेना उचित होगा?

सोलंकी के अनुसार यह इस बात पर निर्भर करता है कि आपकी एफडी मैच्योर होने में कितना समय बाकी है। अगर हाल ही एफडी कराया है तो उसे तोड़कर नई एफडी ले सकते हैं, तब पेनल्टी ज्यादा नहीं होगी। लेकिन अगर एफडी मैच्युरिटी के करीब है तो ऐसा करना ठीक नहीं होगा।

बेनीवाल के मुताबिक ब्याज का अंतर बहुत अधिक है तो ऐसा किया जा सकता है, लेकिन पहले फायदा कैलकुलेट करना जरूरी है। बैंकों के अपने नियम भी होते हैं। मान लीजिए लिक्विडिटी जोखिम का क्या मतलब है किसी बैंक का नियम है कि अगर लॉन्ग टर्म एफडी को 6 महीने से पहले कोई तोड़ना चाहे तो उसे कोई ब्याज नहीं मिलेगा। ऐसी हालत में नुकसान का आकलन जरूरी है।

सिंघल के अनुसार एफडी की मैच्योरिटी के स्लैब होते हैं। आप छह महीने बाद एफडी तोड़ते हैं तो आपको छह महीने वाला रेट ही मिलेगा। निवेशक को यह देखना चाहिए कि उसे अतिरिक्त रकम कितनी मिलेगा। अगर यह रकम छोटी है तो एफडी तोड़ने से बचना ही ठीक है। एफडी पर ब्याज बहुत ज्यादा बढ़ता भी नहीं है।

कॉरपोरेट एफडी में पैसा लगाना कितना सुरक्षित है?

सोलंकी के अनुसार कंपनी की रेटिंग और वित्तीय स्थिति देखकर ही निवेश करना चाहिए। अगर रेटिंग अच्छी है तब तो निवेश किया जा सकता है, रेटिंग कम होने का मतलब उसमें जोखिम है। उनकी सलाह है कि कॉरपोरेट एफडी में किसी को 15-20 प्रतिशत से ज्यादा पैसा नहीं डालना चाहिए।

बेनीवाल की राय में कॉरपोरेट एफडी की तुलना में म्यूचुअल फंड के फिक्स्ड मैच्योरिटी प्लान बेहतर विकल्प हैं। वित्त वर्ष समाप्ति की ओर है इसलिए ऐसे प्लान आ सकते हैं जो 3 से 4 साल की मैच्योरिटी वाले होंगे। टैक्स एडजस्टमेंट के बाद उन पर मिलने वाला रिटर्न एफडी पर मिलने वाले रिटर्न से बेहतर हो सकता है।

कॉरपोरेट एफडी में जोखिम की बात करते हुए सिंघल कहते हैं, “बैंक में जमा पर पांच लाख रुपये तक की गारंटी तो है। कॉरपोरेट एफडी पर गारंटी नहीं होती। उन्हें सिक्योर या अन-सिक्योर श्रेणी में रखा जा सकता है, लेकिन जोखिम सबमें होता है। यह निवेशक के ऊपर है कि वह कितना जोखिम लेने की क्षमता रखता है।” सिंघल के अनुसार किसी एक कंपनी की एफडी में डायवर्सिफिकेशन नहीं होता है। इसलिए वे टार्गेटेड म्यूचुअल फंड की भी सलाह देते हैं जो डायवर्सिफाइड होते हैं।

किस रेटिंग तक कॉरपोरेट एफडी में निवेश करना ठीक है?

सोलंकी के अनुसार एएए सबसे ऊंची रेटिंग होती है। उसमें जोखिम सबसे कम होता है। निवेशकों को इससे कम रेटिंग वाली एफडी से बचना चाहिए। बेनीवाल के मुताबिक, “किसी एक कंपनी में पैसा लगाना हमेशा जोखिम भरा होता है। कोविड-19 के समय कई अच्छी रेटिंग वाली कंपनियों के भी फेल होने की आशंका जताई जा रही थी। इसलिए म्यूचुअल फंड में निवेश करना बेहतर है। वहां कम से कम डायवर्सिफिकेशन का फायदा तो मिल जाता है।”

सिंघल कहते हैं, “कम रेटिंग वाली कंपनियों पर ब्याज तो अधिक मिल सकता है, लेकिन उनमें जोखिम भी अधिक होगा। एएए रेटिंग को काफी हद तक सुरक्षित कह सकते हैं, लेकिन हमारे सामने ILFS और DHFL के डिफॉल्ट के उदाहरण भी हैं। वे भी एएए रेटिंग वाली कंपनियां थीं।”

(डिसक्लेमरः निवेश करने से पहले विशेषज्ञ की सलाह अवश्य लें। निवेश में किसी नुकसान के लिए जागरण.कॉम जिम्मेदार नहीं होगा। अपडेटेड ब्याज दरों के लिए कृपया संबंधित संस्थान से संपर्क करें)

Target Maturity Funds: शानदार रिटर्न देने वाले म्यूचुअल फंड

Target Maturity Funds: शानदार रिटर्न देने वाले म्यूचुअल फंड

  • Date : 28/10/2022
  • Read: 3 mins Rating : -->

ये म्यूचुअल फंड अपने शानदार रिटर्न और बेहतर लिक्विडिटी के कारण निवेशकों को लुभा रहे हैं।

शानदार रिटर्न देने वाले म्यूचुअल फंड

Target Maturity Funds: टारगेट मैच्योरिटी फंड को भारत में सबसे पहले 2019 में लॉन्च किया गया था। ये वे फंड हैं जो अपने शानदार रिटर्न, बेहतर लिक्विडिटी और कम नुकसान की संभावना के लिए जाने जाते हैं। यही कारण है कि एसेट मैनेजमेंट कंपनियाँ इस क्षेत्र का हिस्सा बनने के लिए खासी उत्सुक नजर आ रही हैं। दैनिक समाचार पत्र द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार फिलहाल हर एक बड़ी एसेट मैनेजमेंट कंपनी एक टारगेट मैच्योरिटी फंड पेश करने में लगी हुई है। इस फंड में लिक्विडिटी जोखिम का क्या मतलब है निवेश करने के लिए आपको कुछ महत्त्वपूर्ण टिप्स देने जा रहे हैं।

2019 में आरंभ

भारत के घरेलू शेयर बाजार के निवेशकों को इनका पहला परिचय 2019 में हुआ था। तब बॉन्ड ईटीएफ 2023 और 2030 इस प्रकार दो शृंखलाएँ लॉन्च की गई थीं। वर्ष 2020 में दो एडिशनल फंड भारत बॉन्ड ईटीएफ शृंखलाएँ 2025 और 2031 पेश की गई थीं। डेट फंड में निवेश करने वालों के लिए एक अच्छी क्रेडिट क्वालिटी का पोर्टफोलियो प्रस्तुत किया गया था।

टीएमएफ के फायदे

इन इन्वेस्टमेंट स्कीम्स को AAA का रेटिंग दिया गया था और ये निवेश की दृष्टि से काफी सुरक्षित हैं। इस स्कीम में पोर्टफोलियो की पारदर्शिता पर ज़ोर दिया गया है और इसमें मैच्योरिटी पूर्व निर्धारित होने के कारण रिटर्न अनुमान लगाना पहले से आसान हो गया है। दूसरी बड़ी बात है कि इसमें ब्याज की दर के बारे में जोखिम बहुत कम हो गया है। निवेशक के लिए किसी भी समय अपनी निवेश की गई रकम की निकासी करना बहुत ही आसान है।

निवेश के विकल्प

इस स्कीम में निवेशकों को पीएसयू बॉन्ड में निवेश करने का विकल्प तो है ही साथ ही एसडीएल इंडेक्स फंड और जीसेक इंडेक्स फंड में भी निवेश करने का विकल्प मिलता है।

लंबी अवधि का निवेश नहीं

विशेषज्ञ क्रेडेंस वेल्थ एडवरटाइजर के संस्थापक कीर्तन शाह का मानना है कि इस स्कीम में लंबी अवधि के निवेश से बचना चाहिए। उनके अनुसार ‘यील्ड में केवल 0.1% या 0.2% अधिक यील्ड ही प्राप्त होगा। इसलिए लंबी अवधि के मैच्योरिटी फंड का विकल्प चुनने से बचना चाहिए। हो सकता है लंबी अवधि के निवेश के कारण कुछ अच्छे मौके हाथ से छूट जाएँ’।

कौन सा विकल्प बेहतर?

जानकारों की राय है कि निवेशक को अपनी आवश्यकता के अनुसार पहले सही मैच्योरिटी वाले फंड को चिन्हित करना चाहिए। उन्हें खुद अपने समय की सीमा निर्धारित करनी चाहिए। इसका मतलब है कि यदि निवेशक को 3 या 5 सालों बाद पैसे की जरूरत है तो निवेशक दो अलग-अलग टारगेट मैच्योरिटी फंड में अपना पैसा विभाजित करके निवेश कर सकते हैं। प्लानरूपी इन्वेस्टमेंट सर्विसेज के संस्थापक अमोल जोशी ने सलाह दी है कि ‘निवेश को उस टीएमएफ में निवेश करना चाहिए जो उनकी आवश्यकता के समय मैच्योर होता हो।’

Target Maturity Funds: टारगेट मैच्योरिटी फंड को भारत में सबसे पहले 2019 में लॉन्च किया गया था। ये वे फंड हैं जो अपने शानदार रिटर्न, बेहतर लिक्विडिटी और कम नुकसान की संभावना के लिए जाने जाते हैं। यही कारण है कि एसेट मैनेजमेंट कंपनियाँ इस क्षेत्र का हिस्सा बनने के लिए खासी उत्सुक नजर आ रही हैं। दैनिक समाचार पत्र द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार फिलहाल हर एक बड़ी एसेट मैनेजमेंट कंपनी एक टारगेट मैच्योरिटी फंड पेश करने में लगी हुई है। इस फंड में निवेश करने के लिए आपको कुछ महत्त्वपूर्ण टिप्स देने जा रहे हैं।

2019 में आरंभ

भारत के घरेलू शेयर बाजार के निवेशकों को इनका पहला परिचय 2019 में हुआ था। तब बॉन्ड ईटीएफ 2023 और 2030 इस प्रकार दो शृंखलाएँ लॉन्च की गई थीं। वर्ष 2020 में दो एडिशनल फंड भारत बॉन्ड ईटीएफ शृंखलाएँ 2025 और 2031 पेश की गई थीं। डेट फंड में निवेश करने वालों के लिए एक अच्छी क्रेडिट क्वालिटी का पोर्टफोलियो प्रस्तुत किया गया था।

टीएमएफ के फायदे

इन इन्वेस्टमेंट स्कीम्स को AAA का रेटिंग दिया गया था और ये निवेश की दृष्टि से काफी सुरक्षित हैं। इस स्कीम में पोर्टफोलियो की पारदर्शिता पर ज़ोर दिया गया है और इसमें मैच्योरिटी पूर्व निर्धारित होने के कारण रिटर्न अनुमान लगाना पहले से आसान हो गया है। दूसरी बड़ी बात है कि इसमें ब्याज की दर के बारे में जोखिम बहुत कम हो गया है। निवेशक के लिए किसी भी समय अपनी निवेश की गई रकम की निकासी करना बहुत ही आसान है।

निवेश के विकल्प

इस स्कीम में निवेशकों को पीएसयू बॉन्ड में निवेश करने का विकल्प तो है ही साथ ही एसडीएल इंडेक्स फंड और जीसेक इंडेक्स फंड में भी निवेश करने का विकल्प मिलता है।

लंबी अवधि का निवेश नहीं

विशेषज्ञ क्रेडेंस वेल्थ एडवरटाइजर के संस्थापक कीर्तन शाह का मानना है कि इस स्कीम में लंबी अवधि के निवेश से बचना चाहिए। उनके अनुसार ‘यील्ड में केवल 0.1% या 0.2% अधिक यील्ड ही प्राप्त होगा। इसलिए लंबी अवधि के मैच्योरिटी फंड का विकल्प चुनने से बचना चाहिए। हो सकता है लंबी अवधि के निवेश के कारण कुछ अच्छे मौके हाथ से छूट जाएँ’।

कौन सा विकल्प बेहतर?

जानकारों की राय है कि निवेशक को अपनी आवश्यकता के अनुसार पहले सही मैच्योरिटी वाले फंड को चिन्हित करना चाहिए। उन्हें खुद अपने समय की सीमा निर्धारित करनी चाहिए। इसका मतलब है कि यदि निवेशक को 3 या 5 सालों बाद पैसे की जरूरत है तो निवेशक दो अलग-अलग टारगेट मैच्योरिटी फंड में अपना पैसा विभाजित लिक्विडिटी जोखिम का क्या मतलब है करके निवेश कर सकते हैं। प्लानरूपी इन्वेस्टमेंट सर्विसेज के संस्थापक अमोल जोशी ने सलाह दी है कि ‘निवेश को उस टीएमएफ में निवेश करना चाहिए जो उनकी आवश्यकता के समय मैच्योर होता हो।’

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Bombay Stock Exchange in Hindi

बंबई स्टॉक एक्सचेंज

BSE बंबई स्टॉक एक्सचेँज के बारे में विस्तार से हिंदी में। बंबई स्टॉक एक्सचेँज कब बना और इसके क्या काम हैं। दुनिया के दूसरे शेयर बाजारों के मुकाबले और NSE के मुकाबले इसका क्या स्थान है।

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