भारतीय शेयर बाजार का समय

Dow Jones Industrial Average : डॉव जोंस का भारतीय शेयर बाजार पर असर – शोमेश कुमार
इसके अलावा डॉव जोंस औ एस ऐंड पी में जो अंतर था वो अब धीरे-धीरे खत्म होगा। अब डॉव जोंस 34000 के स्तर पर जा कर हो सकता है थोड़ा स्थिर हो और एस ऐंड पी 500 अपना 200 डीएमए टेस्ट करे। बाजार में अब अर्थव्यवस्था के आँकड़ों का असर देखने वाला होगा। डॉव जोंस का भारतीय शेयर बाजार पर असर के मुद्दे पर बाजार विश्लेषक शोमेश कुमार से बात कर रहे हैं निवेश मंथन के संपादक राजीव रंजन झा।
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(शेयर मंथन, 18 नवंबर)
Expensive Stocks: ये हैं सबसे महंगे 5 शेयर, 85000 रु तक है कीमत; क्या आपने किया है निवेश?
Most Expensive Stocks: शेयर बाजार में 5-10 रुपये से लेकर 85 हजार रुपये तक के शेयर मौजूद हैं.
Most Expensive Stocks: शेयर बाजार में 5-10 रुपये से लेकर 85 हजार रुपये तक के शेयर मौजूद हैं.
Most Expensive Stocks: शेयर बाजार ऐसी जगह है, जहां हजारों शेयरों में रोजाना ट्रेडिंग होती है. मार्केट में 5-10 रुपये से लेकर 85 हजार रुपये तक के शेयर मौजूद हैं. यानी कुछ ऐसे भी महंगे शेयर हैं, जिनमें निवेश करना सबके लिए आसान नहीं है. यहां ध्यान देने वाली बात है कि स्टॉक प्राइस और स्टॉक का वैल्युएशन दो अलग अलग चीजें हैं. स्टॉक प्राइस का मतलब है कि मौजूदा समय में बाजार में शेयर किस भाव पर ट्रेड हो रहा है. उसे किस भाव पर खरीद सकते हैं. कह सकते हैं कि किस भाव पर उस शेयर की लेन देन हो रही है. शेयर का भाव इंट्राडे में ही कई बार बदल सकता है. इसमें तेजी से घट बढ़ दिख सकती है.
लेकिन शेयर का वैल्युएशन का मतलब शेयर के भाव से अलग है. शेयर का वैल्युएशन उस कंपनी के एक्चुअल वर्थ की सही तस्वीर पेश करता है. ऐसा नहीं है कि शेयर का भाव कम या ज्यादा है तो उसका वेल्युएशन भी पियर्स कंपनियों की तुलना में कम या ज्यादा है. हो सकता है कि 1000 रुपये के भाव वाला शेयर 500 रुपये के भाव वाले पियर्स कंपनी के शेयर की तुलना में अंडर वैल्युड है. फिलहाल हम यहां ऐसे 5 ऐसे शेयरों के बारे में जानकारी दे रहे हैं, जिनके भाव सबसे ज्यादा भाव वाले शेयरों में शामिल हैं. इसमें भाव 23 मार्च को इंट्रोडे में हाई के आधार पर है.
शेयर का भाव: 85000 रुपये
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मद्रास रबड़ फैक्ट्री (MRF) टायर मेकिंग कंपनी है, जिसका शेयर सबसे महंगा है. MRF के एक शेयर का मौजूदा भाव करीब 85000 रुपये हैं. कंपनी का शेयर अप्रैल 1993 में शेयर बाजार में लिस्ट हुआ था. तब शेयर का भाव 11 रुपये था. यानी लिस्टिंग के बाद से शेयर ने 8000 गुना के करीब रिटर्न दिया है. शेयर ने 5 साल में भी करीब 2.25 गुना पैसा निवेशकों का बढ़ा दिया है. एमआरएफ का मार्केट कैप 35868 करोड़ रुपये है और यह 22.09 P/E रेश्यो पर ट्रेड कर रहा है. शेयर के 52 हफ्तों का हाई 98,600 रुपये और 52 हफ्तों का लो 49,915 रुपये है.
हनीवेल आटोमेशन
शेयर का भाव: 45245 रुपये
हनीवेल आटोमेशन का शेयर लिस्ट में दूसरे नंबर पर है. शेयर का मौजूदा भाव 45245 रुपये है. हनीवेल ऑटोमेशन इंडिया लिमिटेड इंटीग्रेटेड ऑटोमेशन और सॉफ्टवेयर सॉल्यूशन मुहैया कराने वाली कंपनी है. इस कंपनी के शेयर ने पिछले 5 सालों में 5 गुना से ज्यादा रिटर्न दिया है. कंपनी का मार्केट कैप 39544 करोड़ रुपये है. जबकि शेयर 83.99 P/E रेश्यो पर ट्रेड कर रहा है. शेयर के 52 हफ्तों का हाई 49,990 रुपये और 52 हफ्तों का लो 20,149 रुपये है.
पेज इंडस्ट्रीज
शेयर का भाव: 30,900 रुपये
पेज इंडस्ट्रीज का शेयर इस लिस्ट में तीसरे नंबर पर है. शेयर का भाव 30900 रुपये है. शेयर के 52 हफ्तों का हाई 32206 रुपये और 52 हफ्तों का लो 16254 रुपये है. कंपनी का मार्केट कैप 34191 करोड़ रुपये है. यह 134 P/E रेश्यो पर ट्रेड कर रह है. पेज इंडस्ट्रीज भारत की इनर वियर, लॉन्जरी और मोजे बनाने और बेचने वाली कंपनी है. इस कंपनी का सबसे पॉपुलर ब्रांड है जॉकी. पिछले 5 सालों में इस शेयर ने करीब 2.5 गुना रिटर्न दिया है.
श्री सीमेंट
शेयर का भाव: 28500 रुपये
श्री सीमेंट का शेयर लिस्ट में तीसरे नंबर पर है. शेयर का मौजूदा भाव 28500 रुपये है. श्री सीमेंट राजस्थान बेस्ड सीमेंट बनाने वाली कंपनी है. यह उत्तर भारत की लीडिंग सीमेंट बनाने वाली कंपनी है. कंपनी श्री पावर और श्री मेगा पावर नाम से बिजली बनती और बेचती है. इस कंपनी के शेयर ने पिछले 5 सालों में 2.2 गुना के करीब रिटर्न दिया है. कंपनी का मार्केट कैप करीब 1.02 लाख करोड़ रुपये है. जबकि शेयर 43.42 P/E रेश्यो पर ट्रेड कर रहा है. शेयर के 52 हफ्तों का हाई 29,090 रुपये और 52 हफ्तों का लो 15410 रुपये है.
3M India Ltd.
शेयर का भाव: 28200 रुपये
3M India Ltd. अमेरिका की 3M कंपनी की सब्सिडियरी है, जो शेयर बाजार में लिस्टेड है. इसका 75 फीसदी स्टेक अमेरिका की इसकी पैरेंट कंपनी के पास है. कंपनी डेंटल सीमेंट, हेल्थ केयर, क्लीनिंग जैसे क्षेत्रों में तमाम तरह के प्रोडक्ट बनाती है. इस कंपनी के एक शेयर की कीमत 23 मार्च को 28200 रुपये थी. पिछले 5 सालों में इस शेयर ने करीब 2.6 गुना का रिटर्न दिया है. कंपनी का मार्केट कैप करीब 31529 करोड़ रुपये है. जबकि शेयर 191.69 P/E रेश्यो पर ट्रेड कर रहा है. शेयर के 52 हफ्तों का हाई 28,640 रुपये और 52 हफ्तों का लो 15,700 रुपये है.
(नोट: हमने यहां जानकारी कंपनी के शेयर के प्रदर्शन के आधार पर दी है. बाजार में जोखिम को देखते हुए निवेश के पहले एक्सपर्ट की राय लें.)
Share Market : नए साल से बदलेंगे शेयर बाजार के नियम, ये होगा सटेलमेंट और आप्शनल प्लान
Share Market : शेयर बाजार में निवेश करने वालों के लिए नए साल के पहले दिन से नया नियम लागू होने जा रहा है। इस नए नियम का लाभ शेयर की खरीद—फरोख्त करने वालों को होगा। ऐसा बताया जा रहा है। बता दे कि दिल्ली से नजदीक होने के कारण मेरठ में काफी बड़े पैमाने पर लोग इस काम को करते हैं।
Published: December 30, 2021 10:59:26 am
पत्रिका न्यूज नेटवर्क
मेरठ . Share Market : शेयर बाजार से जुड़े लोगों के लिए यह खबर काफी काम की है। जो लोगा शेयर बाजार में निवेश करने में दिलचस्पी रखते हैं या खरीद फरोख्त करते हैं उनके लिए यह नया नियम काफी मुनाफे का सौदा बताया जा रहा है। हालांकि इस बारे में कुछ जानकारों ने यह भी बताया है कि सेबी ने यह खरीद—ब्रिकी लचीली बनाने के लिए यह नियम लागू किया है। यह नया नियम आगामी 1 जनवरी 2022 से लागू होगा। इन भारतीय शेयर बाजार का समय नए नियम को लेकर शेयर बाजार में हलचल है।
ये है शेयर बाजार का नया नियम
शेयर बाजारों में खरीद—फरोख्त को पूरा करने के लिए कारोबार वाले दिन के बाद दो कारोबारी दिवस लगते हैं। इसे शेयर बाजार में टी+2 के नाम से जाना जाता है। इसका मतलब होता है ट्रेडिंग करना और दो दिन बाद बेचना। लेकिन अब नए नियम के अनुसार ट्रेडिंग करने वालों को शेयर को दूसरे दिन ही बेच सकने का विकल्प दिया है। इन नए नियम को टी+1 के नाम से जाना जाएगा।
शेयर कारोबारियों की माने तो नए सर्कुलर के अनुसार शेयर खरीद-बिक्री प्रक्रिया को पूरा करने में लगने वाले समय को ‘T +1’ या ‘T +2’ का विकल्प देकर शेयर बाजारों को सुविधा उपलब्ध कराई है। यह सेटलमेंट प्लान शेयरों के लिए है और ऑप्शनल है। इसका मतलब होगा अगर ट्रेडर्स चाहें तो इन दोनों प्लान में कोई भी चुन सकते हैं। ये नया नियम 1 जनवरी 2022 से लागू होगा।
देना होगा पहले नोटिस
सेबी के नए नियम के मुताबिक कोई भी स्टॉक एक्सचेंज सभी शेयरधारकों के लिए किसी भी शेयर के लिए टी+1 सेटलमेंट चुन सकता है। लेकिन सेटलमेंट बदलने के लिए कम से कम एक महीना पहले नोटिस देना होगा। स्टॉक एक्सचेंज किसी भी शेयर के लिए अगर एकबार टी+1 सेटलमेंट प्लान चुन लेगा उसे कम से कम 6 महीने तक जारी रखना होगा।
अगर स्टॉक एक्सचेंज बीच में टी+2 सेटलमेंट चुनना चाहता है तो उसे एक महीना पहले नोटिस देना होगा। इन नए नियम को लेकर सेबी ने यह भी कहा है कि टी+1 और टी+2 में कोई फर्क नहीं किया जाएगा। यह स्टॉक एक्सचेंज पर होने वाले सभी तरह के ट्रांजैक्शन पर लागू होगा।
दिवाली के दिन सिर्फ एक घंटे के लिए खुलता है शेयर बाजार, जानें क्या है मुहूर्त ट्रेड और इसका महत्व
हर साल दिवाली के दिन शेयर बाजारों में एक घंटे का विशेष कारोबार होता है। इसे मुहूर्त ट्रेडिंग के नाम से जाना जाता है। भारतीय शेयर बाजारों के लिए यह परंपरा छह दशक पुरानी है।
मुहूर्त ट्रेडिंग की परंपरा छह दशक पुरानी है। (PTI Photo)
दिवाली (Diwali) के दिन बैंकों और ज्यादातर दफ्तरों की तरह शेयर बाजारों (Share Market) में छुट्टी का दिन नहीं रहता है। हर साल दिवाली के मौके पर भारतीय शेयर बाजार एक घंटे के विशेष कारोबार के लिए खुलते हैं। इसे मुहूर्त ट्रेड (Muhurt Trading) के नाम से जाना जाता है। यह कई दशक पुरानी परंपरा है और हर साल इसका पालन किया जाता है।
यह है Muhurt Trading 2021 का समय
बीएसई (BSE) पर दी गई जानकारी के अनुसार, इस साल मुहूर्त ट्रेड का समय शाम 6:15 बजे से 7:15 बजे तक का है। इस दौरान इक्विटी (Equity), इक्विटी फ्यूचर एंड ऑप्शन (Equity F&O) और करेंसी एंड कमॉडिटी (Currency & Commodity) सेगमेंट में विशेष ट्रेडिंग होगी। इस विशेष ट्रेड में ब्लॉक डील (Block Deal) के लिए शाम के 5:45 बजे से छह बजे तक का और प्री ओपन सेशन (Pre Open Session) के लिए शाम के छह बजे से 6:08 बजे तक का समय तय किया गया है। बीएसई की तरह एनएसई (NSE) में भी मुहूर्त ट्रेड का यही समय रहेगा।
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दिवाली के दिन होती है नए संवत की शुरुआत
दरअसल दिवाली के दिन से हिंदू नववर्ष (Hindu New Year) की शुरुआत होती है, जिसे संवत कहा जाता है। इस बार दिवाली को संवत 2078 (Samvat 2078) की शुरुआत होगी। परंपरागत तौर पर दिवाली से ही नए वित्त वर्ष की शुरुआत होती है। इसी दिन आम कारोबारी भी अपना बही-खाता बदलते हैं। शेयर बाजारों में भी इस परंपरा का पालन किया जाता है। नव संवत की शुरुआत के लिए इसी कारण एक घंटे का मुहूर्त ट्रेड आयोजित किया जाता है।
छह दशक पुरानी है मुहूर्त ट्रेड की परंपरा
भारतीय शेयर बाजारों के लिए यह परंपरा करीब छह दशक पुरानी है। भारत ही नहीं बल्कि एशिया के सबसे पुराने स्टॉक एक्सचेंज बीएसई में 1957 में पहली बार मुहूर्त ट्रेड का आयोजन किया गया था। उसके बाद से अब तक हर साल दिवाली पर एक घंटे का मुहूर्त ट्रेड होता है। नेशनल स्टॉक एक्सचेंज पर मुहूर्त ट्रेड 1992 से हो रहा है।
Muhurt Trade का है प्रतीकात्मक महत्व
मुहूर्त ट्रेड को शुभ माना जाता है। जिस तरह लोग अपने परिचित कारोबारियों की दुकान से इस दिन प्रतीकात्मक शॉपिंग करते हैं, उसी तरह भारतीय शेयर बाजार का समय कई ट्रेडर भी मुहूर्त ट्रेड के दिन प्रतीकात्मक खरीद-बिक्री करते हैं। आम तौर पर इस मौके पर ट्रेडर छोटे डील करते हैं। ज्यादातर मौकों पर मुहूर्त ट्रेड में शेयर बाजार कुछ चढ़कर ही बंद होते हैं। हालांकि कई बार मुहूर्त ट्रेड में भी शेयर बाजारों को लाल निशान में देखा गया है।
कुछ ब्रोकर दे रहे हैं ये ऑफर
कई ब्रोकर मुहूर्त ट्रेड को लेकर इंवेस्टर्स को ऑफर भी दे रहे हैं। ब्रोकर प्लेटफॉर्म Zerodha ने सभी सेगमेंट के लिए मुहूर्त ट्रेड के दिन ब्रोकरेज चार्ज नहीं लेने की घोषणा की है। कंपनी 11 साल से यह परंपरा निभाती आ रही है। कंपनी ने कहा कि उसके प्लेटफॉर्म मुहूर्त ट्रेड के दौरान सभी इंट्राडे, एफएंडओ और कमॉडिटी ट्रेड ब्रोकरेज चार्ज से फ्री रहेंगे।
भारतीय बाजार में जारी रहेगी रस्साकशी
लगातार भारतीय शेयर बाजार का समय 10 माह की बिकवाली के बाद विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक पिछले दो सप्ताह से भारतीय शेयरों के विशुद्ध खरीदार की भूमिका में दोबारा लौट आए हैं। इस अवधि में 33 अरब डॉलर की राशि देश से बाहर गई तथा बीएसई 500 में एफपीआई का स्वामित्व 18 फीसदी हो गया जो 2012 के बाद से न्यूनतम है। एफपीआई की बिकवाली मोटे तौर पर उभरते बाजारों से हुई और इन बाजारों से उसका बहिर्गमन बाजार पूंजीकरण के लिहाज से 14 वर्ष पहले आए वित्तीय संकट के बाद सबसे बुरा था। भारत सर्वाधिक प्रभावित देशों में से एक है।
भारी बिकवाली के दौर के बाद बाजार में उछाल आती है और हम ऐसी ही उछाल के बीच में हैं। कई संकेतक उच्चतम स्तर पर पहुंच चुके हैं जिससे अनुमान लगता है कि उचित मूल्य से कम पर बिकवाली हुई है।
अमेरिकी सरकारी बॉन्ड पर मिलने वाला प्रतिफल भी बढ़े हुए स्तर से नीचे आया है। उच्च प्रतिफल परिसंपत्ति मूल्य को प्रभावित करता है और प्रतिफल में गिरावट जोखिम वाली परिसंपत्तियों की मांग तैयार करता है। इन तेजियों के शुरुआती चरण में अधिकांश निवेशक दूर रहते हैं क्योंकि व्यापक मान्यता विश्व अर्थव्यवस्था के खराब भविष्य के पक्ष में है। बहरहाल, कुछ सप्ताह के लिए बाजार इस अवधारणा पर यकीन कर सकते हैं कि ‘बुरी खबर अच्छी खबर है।’ इस कारोबारी व्यवहार के लिए मान्यता यही है कि बाजार अग्रगामी सोच के होते हैं और अब तक बाजार में गिरावट आर्थिक कमजोरी में परिलक्षित हुई है। ऐसे प्रमाण भविष्य की मौद्रिक नीति को लेकर संभावना मजबूत करते हैं जिससे शेयर कीमतों में तेजी आती है। अगर यह तेजी कुछ सप्ताह बरकरार रहती है तो बढ़ती शेयर कीमतें निवेशकों में मौका चूक जाने का भय पैदा कर सकती हैं। ऐसी तेजी तब समाप्त होती है जब आर्थिक आंकड़े अनुमान से कमतर साबित होते हैं या बड़ी तादाद में ऐसे निवेशक चूक जाने की आशंका से ग्रस्त हो जाते हैं। इस समय जब हम बहस कर रहे हैं कि क्या मौजूदा बाजार स्तर आर्थिक बुरी खबरों के अनुरूप है लेकिन उभरते बाजारों के लिए समान महत्त्व का प्रश्न यह भी है कि क्या एफपीआई स्वामित्व अपने न्यूनतम स्तर पहुंच चुका है। हमारा विश्लेषण कहता है कि शायद ऐसा न हुआ हो।
बीते पांच वर्ष से अधिक समय में वैश्विक शेयर बाजार पूंजीकरण में हुई वृद्धि में काफी तिरछापन आया है। पांच वर्ष पहले के 74 लाख करोड़ डॉलर से बढ़कर अब यह 97 लाख करोड़ डॉलर हो चुका है। इसमें अमेरिका की हिस्सेदारी 63 फीसदी, चीन की 21 फीसदी, सऊदी अरब की 11 फीसदी और भारत की पांच फीसदी है। बाकी विश्व में न के बराबर वृद्धि हुई है। सऊदी अरामको की सूचीबद्धता के कारण सऊदी अरब में तेजी आई और चीन में भी गत पांच वर्ष में वार्षिक सूचकांक रिटर्न ऋणात्मक रहा है। वहां भी वृद्धि मोटे तौर पर नयी सूचीबद्धता से ही आई है।
अमेरिका में बीते पांच वर्ष में सूचकांक 10 फीसदी वार्षिक की दर से बढ़े हैं जबकि उभरते बाजारों और यूरोपीय संघ में इनमें एक वर्ष में एक फीसदी की गिरावट आई है। कुछ लोग मान सकते हैं कि अगले पांच वर्षों में यह रुझान इसके उलट हो सकता है। बहरहाल, अगले पांच वर्ष में अमेरिका में मूल्य आय अनुपात में कमी आ सकती है लेकिन गैर अमेरिकी बाजारों में बारे में यही बात नहीं कही जा सकती है।
दूसरी ओर बाजार पूंजीकरण और सकल घरेलू उत्पाद अनुपात के बीच अतियां देखी जा सकती हैं। वैश्विक जीडीपी में अमेरिकी हिस्सेदारी 2010 के बाद से कुछ खास नहीं बदली है। उस दौर में वैश्विक शेयर बाजार पूंजीकरण में अमेरिकी हिस्सेदारी 29 फीसदी से बढ़कर 43 फीसदी हो गयी। अमेरिकी बाजार पूंजीकरण और जीडीपी अनुपात तेजी से बढ़ा और 2010 के 95 प्रतिशत से बढ़कर 2017 में 140 और अब 160 प्रतिशत हो गया है। जबकि अन्य क्षेत्रों में यह एक तय दायरे में रहा। बीते पांच वर्षों में ऐसा उच्च मूल्य आय अनुपात की वजह से नहीं बल्कि अमेरिका के कॉर्पोरेट मुनाफे में जीडीपी की हिस्सेदारी बढ़ने से हुआ है। ऐसे रुझान पलटते भी हैं लेकिन उसकी वजह आमतौर पर राजनीतिक होती है तथा ऐसा कई वर्षों के अंतराल पर होता है।
ऐसे में परिसंपत्ति आवंटकों के लिए अमेरिका में मजबूत प्रतिफल, खासतौर पर पांच वर्ष की अवधि में मिलने वाला प्रतिफल शायद कोई प्रतिरोधक साबित न हो। बल्कि यह भविष्य में अमेरिका में और अधिक आवंटन को बढ़ावा दे सकता है। इन बातों के चलते एफपीआई की आवक बढ़ने का जोखिम रहता है। हकीकत तो यह है कि अगर वैश्विक वृहद आर्थिक अस्थिरता बरकरार रहती है तो एफपीआई की बिकवाली इस वर्ष के आखिर में फिर से शुरू हो सकती है क्योंकि निचले स्तर पर जोखिम तैयार होना जारी रहेगा।
एफपीआई की भारी बिकवाली के बावजूद भारतीय शेयर बाजार काफी मजबूत रहा है। अमेरिकी डॉलर के संदर्भ में उसके कुल बाजार पूंजीकरण ने बीते 12 महीनों में शेष विश्व के शेयरों को 20 फीसदी से अधिक से पीछे छोड़ दिया है। ऐसा तब है जब हम भारतीय जीवन बीमा निगम की सूचीबद्धता को समायोजित कर दें जिसने बाजार पूंजीकरण में दो फीसदी का इजाफा किया। क्या घरेलू आवक जिसने बाजार का समर्थन किया वह जारी रहेगी? इसकी मदद से घरेलू आवक को चार हिस्सों में बांटा जा सकता है।
पहला है खुदरा निवेशकों की प्रत्यक्ष भागीदारी: निरंतर आवक के बावजूद कमजोर प्रदर्शन के कारण बीती तिमाही में बीएसई 500 में उनकी हिस्सेदारी कम हुई। आसान प्रतिफल रुक जाने के कारण खुदरा गतिविधियां धीमी पड़ी हैं तथा कई स्थानों पर ये ठप रही हैं। दूसरी है कर्मचारी भविष्य निधि संगठन या बीमा कपंनियों जैसी संस्थाओं द्वारा संस्थागत खरीदी। इसमें स्थिर आवक होती है और उसका एक हिस्सा शेयरों में जाता है। तीसरा है सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान यानी एसआईपी की मदद से होने वाली भारी भरकम आवक जहां वृद्धि तो धीमी हो सकती है लेकिन एक सार्थक पलटाव की संभावना बहुत कम है। चौथा है शेयरों में होने वाला मोटा-मोटा आवंटन जो उच्च ब्याज दरों के कारण आगे चलकर कमजोर पड़ सकता है। कुल मिलाकर आर्थिक वजहों से सार्थक पलटाव होता नजर नहीं आता।
ऐसे में घरेलू संस्थानों द्वारा बीएसई 500 में एफपीआई को प्रतिस्थापित करना भविष्य में जारी रह सकता है क्योंकि भारतीय निवेशक उस कीमत पर खरीद के इच्छुक हैं जो विदेशी निवेशकों को बहुत अधिक लगती है। भारत में आने वाले एफपीआई की आवक का बड़ा हिस्सा उभरते बाजारों या एशिया फंड के माध्यम से आता है। भारत अभी अपने आप में एक परिसंपत्ति वर्ग नहीं है। ऐसे फंडों में शायद सतत आवक बरकरार नहीं रहे। उभरते बाजार फंड से एक और बर्हिगमन का जोखिम भारतीय बाजार पर मंडराता रहेगा।