किसी देश की मुद्रा क्या है

डॉलर बनाम रुपया | Dollar vs Rupee
अभी कुछ दिन पहले अमेरिका में वित्त मंत्री ने एक प्रश्न के जवाब में कहा कि (dollar vs rupee ) भारत का रुपया गिर रहा है, बोलने की जगह सही तथ्य है कि डॉलर मजबूत हो रहा है। इसके बाद सोशल मीडिया पर उनके इस बयान पर ट्रोल की बाढ़ आ गई। डॉलर मजबूत या रुपया कमजोर के विमर्श में सबसे पहले यह जानना जरुरी है कि रुपए का अवमूल्यन और रुपये के कमजोर होने में क्या अंतर् है। अवमूल्यन किसी अन्य मुद्रा या मुद्राओं के समूह या मुद्रा मानक के सामने किसी देश के रुपए के मूल्य का जानबूझकर नीचे की ओर किया गया समायोजन है। जिन देशों में मुद्रा की एक स्थिर विनिमय दर या अर्ध-स्थिर विनिमय दर होती है, वे इस तरह की मौद्रिक नीति का इस्तेमाल करते हैं। इसे अक्सर आम लोगों द्वारा रुपए का मूल्यह्रास समझ लिया जाता है। अवमूल्यन स्वतंत्र नहीं होता इसका निर्णय बाजार नहीं, किसी देश की सरकार लेती है। यह रुपए के कमजोर होने जिसे मुद्रा का मूल्यह्रास भी कहते हैं की तरह गैर-सरकारी गतिविधियों का परिणाम नहीं बाकायदा सरकार द्वारा विचारित और निर्णीत होता है।
वहीं मुद्रा का मूल्यह्रास एक मुद्रा के मूल्य में, उसकी विनिमय दर बनाम अन्य मुद्राओं के संदर्भ में गिरावट को संदर्भित करता है। मुद्रा का मूल्यह्रास बाजार आधारित होता है इसलिए यह बुनियादी आर्थिक स्थिति, आयात निर्यात और चालू खाता, ब्याज दर के अंतर, मुद्रा स्फीति, विदेशी मुद्रा का भंडार और प्रवाह, राजनीतिक अस्थिरता, या निवेशकों के बीच जोखिम से बचने जैसे कारकों के कारण हो सकता है। जिन देशों की आर्थिक बुनियाद कमजोर होती है , पुराना चालू खाता घाटे में चला आ रहा होता है या मुद्रास्फीति की उच्च दर होती है उन देशों की मुद्राओं में आम तौर पर मूल्यह्रास होता रहता है।
भारत में एक दशक में पहली बार, अमेरिकी डॉलर 2022 की पहली छमाही में अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच गया और उसके मुकाबले रुपए का मूल्य गिरकर एक डॉलर के मुकाबले 82 रुपए तक पहुंच गया। कोरोना के बाद हम संभल रहे थे तभी यूक्रेन युद्ध , कच्चे तेल की कीमतें बढ़ी, ग्लोबल मंदी की आहट, अमेरिका के फेडरल बैंक ने ब्याज दर बढ़ाना शुरू किया, विदेशी निवेशक पैसा डॉलर सम्पत्तियों में ब्याज दर बढ़ने से उसके रिटर्न रेट बढ़ने के कारण पैसा भारत से निकाल वहां लगाने लगे तो अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये कमजोर होता चला गया। देश पहले से ही उच्च मुद्रास्फीति से जूझ रहा था, अब रुपये की यह गिरावट भी परेशान कर रही है। इसीलिए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने जो कहा, “रूस-यूक्रेन युद्ध, कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों और अंतरराष्ट्रीय वित्तीय स्थितियों के सख्त होने जैसे वैश्विक कारक डॉलर के मुकाबले रुपये के कमजोर होने के प्रमुख कारण हैं तथा “ब्रिटिश पाउंड, जापानी येन और यूरो जैसी वैश्विक मुद्राएं भारतीय रुपये की तुलना में अधिक कमजोर हुई हैं, जिसका मतलब है भारतीय रुपया 2022 में इन मुद्राओं के मुकाबले मजबूत हुआ है” ठीक ही कहा। इन बड़ी इकोनॉमी के अलावा भारत की तुलना में पाकिस्तान बांग्लादेश और श्रीलंका की मुद्राएं तो और तेजी से गिरी हैं, यहां तक कि चीन की अर्थव्यवस्था भी डांवाडोल हुई है।
कुछ चुनिंदा देशों के अलावा डॉलर इंडेक्स की भी तुलना करते हैं। डॉलर इंडेक्स पौंड, यूरो एवं येन सहित दुनिया की 6 प्रमुख देशों की मुद्राओं के एक बास्केट के मुकाबले अमेरिकी डॉलर के सापेक्ष मूल्य को व्यक्त करता है। यदि सूचकांक बढ़ रहा है, तो इसका मतलब है कि डॉलर बास्केट के मुकाबले मजबूत हो रहा है। 18 अक्टूबर 2021 को 6 प्रमुख मुद्राओं के डॉलर इंडेक्स का मूल्य 94 था जो आज 112 है।
अमेरिकी फेडरल रिजर्व दर जो फरवरी 2022 में शून्य थी वह अब 3.25 फीसदी हो गई है। अमेरिकी बैंकों को दैनिक आधार पर यूएस फेडरल बैंक के लिए एक निश्चित राशि बनाए रखने की आवश्यकता है। वे दूसरे बैंक से ऋण लेते रहते हैं और उस ऋण पर ब्याज दर को फेडरल ब्याज दर कहा जाता है। जब फेडरल बैंक उस ब्याज दर में वृद्धि करता है तो दुनिया के सभी निवेशक, अपने वर्तमान निवेश से पैसा निकालते हैं और यूएस फेड बैंक में निवेश करते हैं क्योंकि यह सबसे सुरक्षित निवेश माना जाता है। इस फेडरल बैंक में केवल यूएसडी में निवेश हो सकता है, मतलब यूएसडी की मांग बढ़ गई। अब यूएसडी की मांग बढ़ने से यूएसडी की कीमतें बढ़नी लगती हैं, जो फिलहाल फेडरल बैंक द्वारा दर बढ़ाने के कारण हो रहा है। अब सवाल उठता है फेडरल क्यों ऐसा कर रहा है, तो जबाब है भारत की तरह वह भी ब्याज दर बढ़ा महंगाई नियंत्रित करना चाहता है। जैसे-जैसे ब्याज दर अधिक होती है लोग बैंकों में जमा बढ़ा देते हैं, निवेश करना शुरू हो जाता है और कर्ज और क्रेडिट कार्ड महंगा हो जाता है लोग कर्ज लेकर खर्च करना कम कर देते हैं जिस कारण बाजार में मुद्रा का प्रचलन कम हो जाता है, मांग कम हो जाती है और कीमत कम हो जाती है। अब यहां जो डॉलर मजबूत हो रहा है उसका कारण हमारा आंतरिक नहीं है एक बड़ा कारण फेडरल बैंक की नीतियां हैं।
इसलिए उनकी बात सही भी है कि भारत में जो डॉलर के मुकाबले रुपया गिर रहा है यह रुपए का अवमूल्यन नहीं, यह सापेक्षिक गिरावट है जिसे रुपए का मूल्य ह्रास कहते हैं। यह मुद्रा बाजार की परिस्थितियों के कारण हुआ है। इस बाजार में ऐसा नहीं है कि रुपया कमजोर हो गया है, यह तो दुनिया की करेंसी में से एक करेंसी के ज्यादा मजबूत होने के कारण बाकी सब अपने आप कमजोर हो जाते हैं। हर देश की विशिष्ट आर्थिक परिस्थिति होती है उसकी खुद की बुनियादी आर्थिक विशेषता होती है, ब्याज दर होता है, राजनीतिक स्थिरता अस्थिरता होती है, निवेशकों के जोखिम के विशिष्ट कारक होते हैं ऐसे में इन किसी देश की मुद्रा क्या है देशों का मूल्य ह्रास उनकी अपनी इस विशिष्टता के कारण अलग अलग हो रहा है इसीलिए इस मुद्रा के उथल पुथल में भारत का रुपया भले ही डॉलर के मुकाबले कमजोर दिख रहा हो लेकिन अन्य देशों के स्वतंत्र मूल्य ह्रास के कारण उनके सापेक्ष मजबूत भी हुआ है। इसलिए यह केवल गिरावट नहीं है रुपया कई देशों के मुकाबले मजबूत भी हुआ है जैसा कि वित्त मंत्री ने अपने भाषण में जिक्र किया। इसलिए इसे सिर्फ एक कोण से नहीं देखा जाना चाहिए, बहुआयामी दृष्टिकोण लगाना पड़ेगा।
भारत जैसा विकासशील देश ज्यादातर तेल, गैस, धातु, इलेक्ट्रॉनिक्स, हैवी मशीनरी, प्लास्टिक आदि के मामले में आयात पर निर्भर करता है और इसका भुगतान अमेरिकी डॉलर में करना पड़ता है। रुपये के मूल्य में गिरावट के साथ, देश को पहले की तुलना में उसी वस्तु के लिए उसी डालर मूल्य के मुकाबले अधिक भुगतान करना पड़ता है। इससे कच्चे माल और उत्पादन लागत में वृद्धि होगी जिसकी अंतत: ग्राहकों पर ही मार पड़ेगी। आयात से लिंक हर चीजें प्रभावित होंगी। हालांकि कमजोर घरेलू मुद्रा निर्यात को किसी देश की मुद्रा क्या है बढ़ावा देती है क्योंकि विदेशी खरीददार की डॉलर में क्रय शक्ति बढ़ जाती है लेकिन कमजोर वैश्विक मांग और लगातार अस्थिरता के मौजूदा परिदृश्य में इसका लाभ भारत को मिलता नहीं दिख रहा है। इस बीच देश के विदेशी मुद्रा भंडार में भी गिरावट आई है, देश का व्यापार घाटा भी बढ़ा है। रुपये को संभालने के लिए आरबीआई ने खुले मार्किट में डॉलर की बिक्री भी की है, लेकिन अभी तक इसका कोई अधिक प्रभाव दिख नहीं रहा है।
सरकार इसे वैश्विक कारक बोलकर पल्ला नहीं झाड़ सकती या डॉलर बेच या ब्याज दर बढ़ा मुकाबला नहीं कर सकती क्योंकि अन्तत: यह ऋण भी महंगा कर देता है । यदि अपना घर मजबूत होता तो ऐसी डॉलर की मजबूती की आंधियां हमारे रुपए को प्रभावित नहीं कर पाती। यदि हम आयात को कम कर दें यहां तक कि निर्यात ज्यादा हो जाए या दोनों आसपास हो जाएं, पेट्रोल और गैस पर निर्भरता कम कर इलेक्ट्रिक, एथेनॉल, ग्रीन हाइड्रोजन, सौर और परमाणु ऊर्जा के प्रयोग से अपना तेल और गैस बिल कम कर दें, आत्मनिर्भर भारत मेक इन इंडिया पर तेजी से काम करें, डॉलर का आॅउटफ्लो कम कर इनफ्लो पर काम करें, देशों से रुपए या अन्य मजबूत मुद्राओं में सौदे सेटलमेंट की बात करें तब जाकर हम अमेरिकी डॉलर को विश्व बाजार में नियंत्रित कर सकते हैं, नहीं तो वैश्विक मान्य करेंसी के रूप में उसकी मांग हमेशा बनी रहेगी और बेहतर करने के बावजूद भी किसी अन्य कारण से उसकी मांग बढ़ गयी तो हमारी सारी मेहनत धरी की धरी रह जायेगी और रुपया गिर जायेगा। इसलिए देशों को डॉलर को एकाधिकारी मुद्रा से बाहर लाना होगा।
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Costliest Currencies of World: ये है दुनिया की 5 सबसे महंगी करेंसी, डॉलर और पाउंड भी हैं इनके सामने फेल
कई लोग यह मानने की गलती कर देते हैं कि डॉलर ही दुनिया की सबसे महंगी करेंसी है। दुनिया के कई देश हैं जिनकी करेंसी डॉलर से कहीं ज्यादा महंगी है।
Edited by: Sachin Chaturvedi @sachinbakul
Updated on: May 20, 2022 16:38 IST
Photo:FILE
Highlights
- दुनिया के कई देश हैं जिनकी करेंसी डॉलर से कहीं ज्यादा महंगी है
- इनमें से अधिकतर खाड़ी के देश हैं जहां तेल के अकूत भंडार मौजूद हैं
- कुवैती दिनार को किसी भी देश की सबसे महंगी करेंसी माना जाता है
Costliest Currencies of World: दुनिया भर में जब हम करेंसी का जिक्र करते हैं तो पहला नाम डॉलर का आता है। वास्तव में देखा जाए तो मौजूदा दौर में पूरी दुनिया अमेरिकी डॉलर के इर्दगिर्द घूम रही है। बुधवार को ही भारतीय रुपया 77.60 प्रति डॉलर के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है। वहीं पाकिस्तान में डॉलर के दाम 200 रुपये के पार निकल गए हैं। डॉलर महंगा होने पर हमारे देश में आयातित चीजों की महंगाई आसमान छूने लगती है।
जब डॉलर इतना लोकप्रिय है, तो ऐसे में कई लोग यह मानने की गलती कर देते हैं कि डॉलर ही दुनिया की सबसे महंगी करेंसी है। दुनिया के कई देश हैं जिनकी करेंसी डॉलर से कहीं ज्यादा महंगी है। यानि आपको इन देशों की करेंसी खरीदने के लिए जाते हैं तो आपको एक से ज्यादा डॉलर खर्च करने होंगे। ऐसे में भारतीय रुपये से इनकी तुलना करनी बेमानी होगी। खास बात यह भी है इनमें से अधिकतर खाड़ी के देश हैं जहां तेल के अकूत भंडार मौजूद हैं। आइए जानते हैं दुनिया की 5 सबसे महंगी करेंसी के बारे में और यह पता लगाते हैं कि ये इतनी महंगी क्यों है।
1. कुवैती दिनार
कुवैती दिनार को किसी भी देश के द्वारा जारी की गई सबसे महंगी करेंसी माना जाता है। डॉलर में इसका 3.30 डॉलर है। यानि कि आपको सवा तीन डॉलर खर्च करने पर 1 कुवैती दिनार मिलेगा। दरअसल इसकी मजबूती के दो कारण है, पहला यह कुवैत ने अपनी करेंसी के दाम एक करेंसी बास्केट के अनुरूप फिक्स कर रखे हैं। यहां रेट भारत या अन्य दूसरी करेंसी की तरह रोज मनी मार्केट में तय मूल्य के आधार पर बदलते नहीं हैं। दूसरा यह कि कच्चे तेल की बिक्री के चलते इसके पास डॉलर के बड़े भंडार मौजूद हैं।
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2. बहरीनी दिनार
दुनिया की दूसरी सबसे महंगी करेंसी बहरीनी दिनार है। डॉलर से मुकाबला करें तो 1 बहरीनी दिनार को खरीदने में आपको 2.66 अमरीकी डॉलर खर्च रने होंगे। दुनिया के बड़े तेल उत्पादक होने के चलते बहरीन की करेंसी काफी मजबूत है। यहां भी करेंसी की कीमत फिक्स रखी गई है। खास बात यह है कि बहरीन भी सऊदी रियाल को आधिकारिक करेंसी के रूप में स्वीकार करता है। दो मुद्राओं के बीच वर्तमान विनिमय दर 9.95 रियाल से एक दिनार है।
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3. ओमानी रियाल
एक और तेल उत्पादक देश और एक और मजबूत करेंसी। ओमानी रियाल दुनिया की तीसरी सबसे महंगी करेंसी है। एक ओमानी रियाल के लिए आपको 2.6 अमरीकी डॉलर खर्च करने होंगे। नोट इतना कीमती हो गया है कि सरकार को 1/4 और 1/2 रियाल के नोट जारी करने पड़े हैं।
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4. जॉर्डेनियन दिनार
जॉर्डन भले ही तेल उत्पादक देश नहीं है, फिर भी इसकी करेंसी दुनिया की 4थी सबसे मजबूत करेंसी है। जॉर्डन के पास अपने अच्छे पड़ोसियों के तेल संसाधन नहीं हैं, लेकिन इसकी सरकार विनिमय दरों को कंट्रोल में रखती है, जो इसके दिनार के मूल्य को ऊंचा रखती है। एक जॉर्डेनियन दिनार में आपको करीब 1.41 डॉलर मिलेंगे।
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5. केमन आइलैंड डॉलर
केमन आइलैंड का नाम भले ही आपने न सुना हो लेकिन कालाधन छिपाने की तरकीब लगाने वालों के बीच यह बहुत लोकप्रिय है। इसे दुनिया का सबसे बड़ा टैक्स हैवन देश कहा जाता है। यह आईलैंड कैरेबियन सागर में स्थित है। एक केमन आईलैंड डॉलर को खरीदने के लिए आपको 1.22 डॉलर खर्च करना पड़ेगा। हालांकि ब्रिटिश पाउंड इससे मौजूदा समय में महंगा है, लेकिन फ्लोटिंग आधार पर तय होने के कारण पाउंड की कीमत बदलती रहती है।
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भारत की आजादी के वक्त एक डॉलर की कीमत थी चार रुपये, आज करीब 80, पढ़ें 75 वर्ष में कैसे हुआ बदलाव
जुलाई 2022 में भारतीय रुपया पहली बार अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 80 के निचले स्तर पर फिसल गया क्योंकि आपूर्ति प्रभावित होने के चलते कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों ने अमेरिकी डॉलर की मांग को बढ़ावा दिया।
रुपये ने डॉलर तोड़ा अपना पिछला रिकॉर्ड कर 79.99 के निचले स्तर पर पहुंच गया है।
Rupee’s Journey Since India’s Independence: भारत अपनी आजादी के 75वें वर्ष (75th Independence Day) का जश्न मना रहा है और आने वाले वर्षों के दौरान आर्थिक विकास को ऊंचाइयों पर ले जाने के सपने देख रहा है। अर्थव्यवस्था के अन्य पहलुओं को किनारे रखते हुए आइए देखते हैं कि भारतीय रुपया का 1947 के बाद से अब तक का सफर कैसा रहा है।
किसी देश की मुद्रा उसके आर्थिक विकास का आकलन करने का एक मुख्य घटक होती है। बीते 75 सालों में हमारे देश ने अपार प्रगति की है और लगातार प्रगति के पथ पर अग्रसर है। लेकिन, देश की मुद्रा रुपये में लगातार गिरावट दर्ज हो रही है। रुपये के अवमूल्यन का नतीजा यह है कि आज रुपया लगभग 80 रुपये प्रति डॉलर के स्तर पर पहुंच गया है।
पहली बार एक डॉलर की कीमत 4.76 रुपए: भारत को जब 15 अगस्त 1947 को आजादी मिली। उस समय एक डॉलर की कीमत एक रुपए हुआ करती थी, लेकिन जब भारत स्वतंत्र हुआ तब उसके पास उतने पैसे नहीं थे कि अर्थव्यवस्था को चलाया जा सके। उस समय देश के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व वाली सरकार ने विदेशी व्यापार को बढ़ाने के लिए रुपए की वैल्यू को कम करने का फैसला किया। तब पहली बार एक डॉलर की कीमत 4.76 रुपए हुई थी।
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1962 तक रुपये की वैल्यू में कोई बदलाव नहीं हुआ, लेकिन उसके बाद 1962 और 1965 के किसी देश की मुद्रा क्या है युद्ध के बाद देश की अर्थव्यवस्था को बड़ा झटका लगा और 1966 में विदेशी मुद्रा बाजार में भारतीय रुपए की कीमत 6.36 रुपए प्रति डॉलर हो गई। 1967 आते-आते सरकार ने एक बार फिर से रुपए की कीमत को कम करने का फैसला किया, जिसके बाद एक डॉलर की कीमत 7.50 रुपए हो गई।
RBI ने दो फेज में रुपए का अवमूल्यन किया: 1991 में एक बार फिर भारत में गंभीर आर्थिक संकट आया। जिसके बाद देश अपने आयातों का भुगतान करने और अपने विदेशी किसी देश की मुद्रा क्या है ऋण चुकाने की स्थिति में नहीं था। इस संकट को टालने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने दो फेज में रुपए का अवमूल्यन किया और उसकी कीमत 9 प्रतिशत और 11 प्रतिशत घटाई। अवमूल्यन के बाद अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपए का मूल्य लगभग 26 था।
रिसर्च एनालिस्ट दिलीप परमार ने जानकारी दी कि 1991 के आर्थिक सुधारों के बाद से रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले CAGR (चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर) पर 3।74 प्रतिशत की दर से गिर रहा है। 2000 से 2007 के बीच, रुपया एक हद तक स्थिर हो गया जिसके कारण देश में पर्याप्त विदेशी निवेश आया। हालांकि, बाद में 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के दौरान इसमें गिरावट आई।
फॉरेन रिज़र्व का रुपए पर असर: 2009 के बाद से रुपए का मूल्यह्रास शुरू हुआ, जिसके बाद वह 46.5 से अब 79.5 पर पहुंच गया। डॉलर के मुकाबले रुपये के लुढ़कने की सबसे बड़ी वजह फॉरेन रिज़र्व में गिरावट होती है। अगर फॉरेन रिज़र्व कम होगा तो रुपया कमज़ोर होगा और अगर ये ज्यादा होगा तो रुपया मज़बूत होगा।
हाल की घटनाओं को देखें तो जहां सितंबर 2021 में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 642.45 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया था। वहीं, 24 जून 2022 आते-आते ये कम होकर 593.32 बिलियन डॉलर पर आ गया है। जिसके पीछे की सबसे अहम वजह महंगाई और क्रूड ऑयल की बढ़ती कीमतों को बताया जा रहा है। यही वजह है कि रुपए की वैल्यू गिरती जा रही है।
बिटकाॅइन से नहीं है किसी भी मुद्रा को नुकसान (Bitcoin is Not Harmful For Any Currency)
बिटकॉइन से किसी देश की मुद्रा को कितना नुकसान?
जब से बिटकॉइन बना है तब से यह मुद्दा भी सामने आने लगा है कि क्या बिटकॉइन किसी देश की स्थानीय मुद्रा की जगह ले सकता है? क्या आने वाले समय में बिटकॉइन इतना मजबूत हो जाएगा की सभी देशों की मुद्रा को खत्म कर देगा?
इस विषय को गहराई से समझने की जरुरत है क्योंकि जैसे जैसे बिटकॉइन और बाकि क्रिप्टो के साथ क्रिप्टो क्षेत्र आगे बढ़ रहा है वैसे-वैसे इसके बारे में गलत जानकारी भी भ्रम पैदा किसी देश की मुद्रा क्या है कर रही हैं। पिछले कुछ समय में कई देशों ने अलग अलग तरीके से अपने देश में बिटकॉइन को मान्यता दी है। किसी देश में आप बिटकॉइन से टैक्स दे सकते हैं, कई देशों में बिटकॉइन और बाकि क्रिप्टो से खरीदारी कर सकते हैं। केवल एक देश ऐसा है जिसने बिटकॉइन को अपनी अधिकारिक मुद्रा होने का दर्जा दिया है और इसका नाम है एल सल्वाडोर। कुछ देशों में बिटकॉइन और बाकि क्रिप्टो पर पूरी तरह से प्रतिबन्ध है और कुछ जगहों की सरकार इस विषय पर अभी विचार कर रही है।
बिटकॉइन और मुद्रा में फर्क
इस विषय में सबसे पहले समझने वाली बात है कि ‘बिटकॉइन और मुद्रा में’ क्या फर्क है? बिटकॉइन एक विकेन्द्रीयकृत तकनीक पर आधारित है और इसका नियंत्रण किसी एक व्यक्ति या समुदाय के हाथ में नहीं है! बिटकॉइन की कार्य प्रणाली पहले से ही निर्धारित कोडिंग पर चलती है और इसे बदला नहीं जा सकता और न ही इस से छेड़छाड़ की जा सकती है। बिटकॉइन की मात्रा को बढ़ाया या घटाया नहीं जा सकता।
इसके विपरीत हर देश की मुद्रा पर वहां की सरकार का नियंत्रण होता है और मुद्रा से सम्बंधित सभी निर्णय उस देश की सरकार लेती है। स्थानीय मुद्रा का नियंत्रण सरकार के हाथ में होने के कारण वह इसके विषय में समय समय पर कानून बनाती रहती है और जरुरत पड़ने पर मुद्रा की मात्रा को बढ़ाया जाता है।सरकार चाहे तो कभी भी अपने देश की मुद्रा को बंद कर सकती है। अगर आपके पास बिटकॉइन है तो आप 100% उसके मालिक हैं लेकिन मुद्रा पर सरकार का नियंत्रण होने के कारण हम मुद्रा का इस्तेमाल तो कर सकते हैं लेकिन हम उसके मालिक नहीं बन सकते।
मुद्रा और बिटकॉइन के इस्तेमाल में फर्क
बिटकॉइन पूरी तरह से इंटरनेट पर आधारित है और इसके इस्तेमाल के लिए इंटरनेट और स्मार्ट फ़ोन या कंप्यूटर का होना अनिवार्य है। इन दो सुविधाओं के बिना बिटकॉइन का लेनदेन संभव नहीं है। अगर हम मुद्रा की बात करें तो यहाँ पर कई तरीके हैं लेनदेन को मुद्रा से पूरा करने के। अगर इंटरनेट और फ़ोन है तो एप्लीकेशन के द्वारा इसका लेनदेन किया जा सकता है लेकिन अगर यह सुविधाएं नहीं है तब भी कैश लेनदेन किया जा सकता है। कैश लेनदेन की एक समस्या है कि इस से सीमित मात्रा में ही लेनदेन किया जा सकता है और इसका दायरा सीमित है यानि जहां आप हैं वहीं लेनदेन कर सकते हैं किसी और जगह नहीं। बिटकॉइन से असीमित लेनदेन किया जा सकता है और कही भी लेनदेन कि कीमत को चुकाया जा सकता है। इसके इलावा बैंक भी चेक द्वारा लेनदेन को पूरा करने कि सुविधा देते हैं। बिटकॉइन कि कीमत स्थिर नहीं है इस लिए बिटकॉइन से खरीदारी करने और बेचने वाले को फायदा और नुकसान दोनों कि सम्भावनाएं है लेकिन मुद्रा कि कीमत स्थिर है इस लिए मुद्रा के साथ ऐसी कोई समस्या नहीं है।
बिटकॉइन से खरीद कितनी आसान
जैसा हमने पहले बताया कि बिटकॉइन के लिए फ़ोन या कंप्यूटर के साथ साथ इंटरनेट भी जरुरी है और इसका इस्तेमाल करने के लिए एक हद तक शिक्षा कि भी जरुरत है। आज भी दुनिया की बहुत बड़ी आबादी तक फ़ोन और इंटरनेट कि सुविधा नहीं पहुंच पाई है, ऐसी जगहों पर बिटकॉइन या क्रिप्टो का इस्तेमाल मुश्किल है। बिटकॉइन से लेनदेन के मामले में सबसे बड़ा मुद्दा है इसकी कीमत में होने वाले उतर चढ़ाव और इसकी ट्रांजक्शन फीस। अगर किसी वस्तु कि कीमत 100 डॉलर निर्धारित कर दी जाए और बिटकॉइन से यह कीमत दी जाए तो सबसे पहले तो यह कीमत देने वाले को अगर एक डॉलर भी फीस देनी पड़े तो यह 1% महंगा हो जाएगा। इसके बाद अगर बिटकॉइन की कीमत नीचे आ जाए तो बेचने वाले को नुकसान होगा और कीमत ऊपर चली जाए तो खरीदार को लगेगा कि उसको नुकसान हो गया। जैसे 10000 बिटकॉइन से दो पिज़्ज़ा खरीदने वाला आज सोच रहा होगा। जैसे जैसे बिटकॉइन कि माइनिंग बढ़ती जाएगी वैसे वैसे कीमत के साथ साथ इसकी फीस भी बढ़ती जाएगी और बिटकॉइन से खरीदारी कम व्यावहारिक रह जाएगी।
बिटकॉइन की ट्रांजक्शन का देर के पूरा होना भी एक बड़ी समस्या है। अगर कोई लेनदेन बिटकॉइन से किया जा रहा है तो यह तब तक पूरा नहीं होगा जब तक बिटकॉइन उस व्यक्ति के एकाउंट में नहीं आ जाता जिसने इसके बदले में कोई सुविधा दी है या कोई वस्तु दी है। आमतौर पर दुकानों, मॉल, रेलवे टिकट काऊंटर, हवाई अड्डे जैसी सार्वजनिक जगहों पर लम्बी लाइन लगी होती है और ऐसे में अगर लेनदेन जल्द पूरा न हो तो इस से बड़ी समस्या पैदा हो जाएगी। इसका समाधान क्रिप्टो के कई प्रोजेक्ट निकल रहे हैं जहां पर ट्रांजक्शन बहुत तेज़ है और फीस भी बहुत ही कम है। इन बातों को देखें तो बिटकॉइन से लेनदेन थोड़ा मुश्किल ही लगता है।
अभी बिटकॉइन और क्रिप्टो को बहुत सारी समस्याओं को खत्म करना जरुरी है फिर हम यह कह सकते हैं कि क्रिप्टो से लेनदेन संभव हो सकता है। आज दुनिया के कई देश अपनी खुद की CBDC ला रहे हैं और यह लेनदेन को और आसान बनाएगी। अगर हम सभी मुद्दों को देखें तो अंत में हम यह कह सकते हैं कि बिटकॉइन से किसी भी देश की मुद्रा को कोई खतरा नहीं है और न ही भविष्य में कभी ऐसा हो सकता है। बिटकॉइन एक तकनीक है जो सभी नियंत्रणों से आजाद है और इसी लिए लोग यहाँ पर अपने निवेश को सुरक्षित समझते हैं। बिटकॉइन से एक हद तक कुछ सेवाओं या वस्तुओं का लेनदेन संभव है लेकिन सभी सुविधाओं के लिए बिटकॉइन और क्रिप्टो का इस्तेमाल कम व्यवाहरिक है।
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भारत की मुद्रा क्या है। Bharat Ki Mudra
जैसा कि हम सब जानते हैं भारत एक विकासशील देश है जो प्रगति की ओर बहुत ही तेजी से बढ़ रहा है। परंतु आज भी यह देश अन्य देशों के मुकाबले बहुत पीछे हैं। अमेरिका, चीन, दुबई, जापान आदि देश सिर्फ technology में आगे नहीं है बल्कि इनकी मुद्राएं भी भारतीय मुद्रा से आगे रहती हैं। परंतु भारत की मुद्रा और इसका चिन्ह क्या है। इसके बारे में बहुत कम लोगों को जानकारी होती है। इसलिए इस लेख में हम जानेंगे कि भारतीय मुद्रा क्या है और international market में इसकी वैल्यू क्या है। चलिए शुरू करते हैं।
भारत की मुद्रा के बारे में जानकारी
भारत की मुद्रा “भारतीय रुपया” है। भारतीय मुद्रा का आधिकारिक प्रतीक चिन्ह “₹” है जिसको 15 जुलाई 2010 को किसी देश की मुद्रा क्या है जारी किया गया था। इससे पहले भारतीय रुपया को “रु” से दर्शाया जाता था। परंतु 2010 में Indian government ने इसे एक प्रतीक चिन्ह में बदलने की सोची जिसे iit गुवाहाटी के एक प्रोफेसर ने इसे डिजाइन किया। उन प्रोफेसर का नाम डी. उदय कुमार है। जिन्होंने भारत के प्रतीक चिन्ह को डिजाइन किया है।
भारत के भारतीय प्रतीक चिन्ह को डिजाइन करने के लिए एक प्रतियोगिता आयोजित की गई थी जिसमें लगभग 300 से ज्यादा आवेदन गवर्नमेंट को प्राप्त हुए थे जिनमें से यह प्रतीक चिन्ह चुना गया था।
वर्तमान समय में भारतीय रुपयों को भारतीय रिजर्व बैंक के द्वारा नियामक और जारी किया जाता है।
और वर्तमान समय में भारतीय रिजर्व बैंक के द्वारा भारत में एक रुपए के सिक्के ₹2 ₹5 के सिक्के 10 का सिक्का एवं 50, 100, 200, 500, और 2000 का नोट जारी किए गया है।
अगर यह सब जारी नोट एवं सिक्के किसी के द्वारा लिए नहीं जाते हैं तो यह भारतीय मुद्रा का अपमान माना जाता है इसके लिए आप रिजर्व बैंक से इसकी शिकायत कर सकते हैं।
भारतीय मुद्रा की इंटरनेशनल मार्केट में वैल्यू
- 1 यूएस डॉलर = 76 ₹
- 1 भारतीय ₹ = 1.86 पाकिस्तानी रुपया
जैसा हमने ऊपर देखा कि भारतीय मुद्रा की इंटरनेशनल मार्केट में कुछ ज्यादा खासा वैल्यू नहीं है। US Doller के मुकाबले भारतीय रुपया बहुत कमजोर है।