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अधिनायकवादी शासन के साथ व्यापार संबंध में बड़े जोखिम हैं : नाटो प्रमुख
दावोस। स्वतंत्रता को मुक्त व्यापार से अधिक महत्वपूर्ण करार देते हुए नाटो के महासचिव जेन्स स्टोलटेनबर्ग ने मंगलवार को कहा कि यूक्रेन युद्ध ने दुनिया को सिखाया है कि अधिनायकवादी शासन पर आर्थिक निर्भरता में बड़े जोखिम हैं। उन्होंने चीन को अधिनायकवादी सरकार का उदाहरण बताया। उन्होंने यह भी कहा कि उत्तर अटलांटिक संधि संगठन …
दावोस। स्वतंत्रता को मुक्त व्यापार से अधिक महत्वपूर्ण करार देते हुए नाटो के महासचिव जेन्स स्टोलटेनबर्ग ने मंगलवार को कहा कि यूक्रेन युद्ध ने दुनिया को सिखाया है कि अधिनायकवादी शासन पर आर्थिक निर्भरता में बड़े जोखिम हैं। उन्होंने चीन को अधिनायकवादी सरकार का उदाहरण बताया। उन्होंने यह भी कहा कि उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) यूक्रेन का समर्थन जारी रखने के लिए प्रतिबद्ध है, लेकिन नाटो सैनिकों को वहां भेजकर युद्ध में अपनी प्रत्यक्ष भागीदारी से इंकार कर दिया।
स्टोलटेनबर्ग ने कहा, ‘‘हमने 2014 से यूक्रेन को अपना समर्थन प्रदान किया है, जिसे अब बढ़ा दिया गया है। हम समर्थन जारी रखेंगे, लेकिन वहां नाटो सैनिकों को भेजकर हम सीधे युद्ध में शामिल नहीं होंगे। यह उकसाने के लिए नहीं बल्कि यह सुनिश्चित करने के लिए है कि हर सहयोगी सुरक्षित रहे।’’ विश्व आर्थिक मंच (डब्ल्यूईएफ) की वार्षिक बैठक 2022 को संबोधित करते हुए स्टोलटेनबर्ग ने कहा कि यूक्रेन युद्ध ने हमें सिखाया है कि अधिनायकवादी शासन पर आर्थिक निर्भरता के भारी जोखिम हो सकते हैं जिसे हमने ऊर्जा संकट के रूप में देखा है।
नाटो प्रमुख ने कहा, ‘‘यह रूस के बारे में है। चीन भी अधिनायकवादी शासन है। हमें वास्तविकताओं का सामना करना होगा। मुक्त व्यापार की तुलना में स्वतंत्रता अधिक महत्वपूर्ण है और मूल्यों की रक्षा करना भी बेहद जरूरी है।’’ उन्होंने कहा कि चीन के साथ व्यापार करने के बहुत लाभ हैं, लेकिन जब 5जी नेटवर्क की बात आती है तो इसमें सुरक्षा संबंधी चिंताएं शामिल हैं और इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।
स्टोलटेनबर्ग जोखिम मुक्त व्यापार ने कहा, “यूक्रेन के खिलाफ रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के युद्ध ने यूरोप में शांति भंग कर दी है। रूस के आक्रमण के बाद से हमने अपना समर्थन काफी बढ़ा दिया है। नाटो की मुख्य जिम्मेदारी अपने सहयोगियों की रक्षा करना और इस युद्ध को बढ़ने से रोकना है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘नाटो में, हमने खुफिया जानकारी एकत्र की और यूक्रेन पर हमला करने के रूस के इरादों के बारे में अपनी जानकारी सार्वजनिक की।’’ स्टोलटेनबर्ग ने कहा, ‘‘2014 में यूक्रेन पर पहले आक्रमण के बाद से, नाटो नजर रख रहा है। जब रूस ने इस साल फिर से यूक्रेन पर हमला किया तो हमने अपना समर्थन बढ़ाया। नाटो क्षेत्र पर किसी भी हमले का जवाब देने के लिए हमारे पास 1,00,000 सैनिक हाई अलर्ट पर हैं।’’
हाईनान मुक्त व्यापार पोर्ट को विशेष क्षेत्र बनाने की तैयारी
हाईनान मुक्त व्यापार बंदरगाह को सीमा शुल्क विभाग के पर्यवेक्षण के तहत विशेष क्षेत्र बनाने की तैयारी का काम हो रहा है। यह हाईनान मुक्त व्यापार पोर्ट के निर्माण का आधार है, जो बहुत महत्वपूर्ण है। योजना के अनुसार वर्ष 2025 से पहले विशेष क्षेत्र बनाने का कार्य पूरा होगा। उसके बाद हाईनान और दुनिया […]
हाईनान मुक्त व्यापार बंदरगाह को सीमा शुल्क विभाग के पर्यवेक्षण के तहत विशेष क्षेत्र बनाने की तैयारी का काम हो रहा है। यह हाईनान मुक्त व्यापार पोर्ट के निर्माण का आधार है, जो बहुत महत्वपूर्ण है।
योजना के अनुसार वर्ष 2025 से पहले विशेष क्षेत्र बनाने का कार्य पूरा होगा। उसके बाद हाईनान और दुनिया के बीच संपर्क और सरल होगा, हाईनान और चीन के अन्य क्षेत्रों के बीच माल और परिवहन साधन की आवाजाही नियंत्रण में होगी और हाईनान द्वीप में व्यापार मुक्त होगा।
बताया जाता है कि अब पोर्ट की योजना और निर्माण, कर नीति और प्रमुख जोखिम की रोकथाम व नियंत्रण आदि 64 मुख्य कार्य पूरे हो चुके हैं। यह हाईनान मुक्त व्यापार पोर्ट के तेज निर्माण के चरण में प्रवेश होने का प्रतीक है।
(साभार—चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग)
जोखिम मुक्त व्यापार
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आयात प्रतिस्थापन से ‘मेक इन इंडिया’ नहीं चल सकता
वर्ष 2015 में, व्यापार उदारीकरण से मुँह मोड़ते हुए भारत ने आयात कम करके, देशी मोबाइल फोन उद्योग को बढ़ावा देने का फैसला लिया था। इस प्रतिस्थापन का उद्देश्य ‘मेक इन इंडिया फॉर द वर्ल्ड’ को सफल बनाना था। जानना यह है कि क्या यह सफल हो पाया ? क्या आयात प्रतिस्थापन के माध्यम से देशी उद्योगों को बढ़ावा देने की केंद्र सरकार की नीति उपयुक्त रही ?
कुछ तथ्य –
- 2014 में जहां टेलीफोन का आयात 750 करोड़ डॉलर था, वह 2020 में गिरकर 220 करोड़ डॉलर रह गया।
- इसी प्रकार निर्यात के क्षेत्र में 2014 में जो आंकड़ा 60 करोड़ डॉलर था, वह 2020 में बढकर 300 करोड़ डॉलर हो गया।
- भारत के हिस्से के बराबर के देश वियतनाम से यदि इस निर्यात बढ़ोत्तरी की तुलना करें, तो यह बहुत कम लगती है। 2014 में वियतनाम ने टेलीफोन निर्यात का 2150 करोड़ डॉलर का लक्ष्य प्राप्त किया था। 2020 में इसे 3120 करोड़ डॉलर तक ले जाया गया।
भारतीय नीतियों में कमी –
- भारत सरकार मुक्त व्यापार समझौतों में अधिक विश्वास नहीं जोखिम मुक्त व्यापार जोखिम मुक्त व्यापार रखती है, जबकि वियतनाम ने चीन और यूरोपीय संघ जैसे आर्थिक दिग्गजों से भी मुक्त व्यापार समझौते किए हैं।
- एक स्मार्टफोन में लगने वाले 1600 पार्टस् की आपूर्ति 43 देशों में फैली 200 कंपनियां करती हैं। अगर विभिन्न देशों से आपका मुक्त व्यापार समझौता नहीं है, तो सीमा शुल्क के साथ इनकी कीमत बढ़ती जाती है। 20% सीमा शुल्क के साथ सरकार ने स्मार्ट फोन की भारत में असेंबली गतिविधि को 200% की भारी सुरक्षा प्रदान की है
- हमारे नेताओं ने ‘मेक इन इंडिया’ का हवाला देते हुए स्मार्टफोन के घटकों के घरेलू उत्पादन पर ही जोर देना शुरू किया। इससे लागत भी बढ़ी और स्मार्टफोन पर मार्जिन भी कम रह गया। इससे असेम्बलिंग करके फोन बनाने वाले व्यवसायी अप्रतिस्पर्धी हो गए। अब कोई भी सरकार असेम्बलिंग व्यवसायियों को आयातित घटकों तक इसलिए पहुँच बनाने नहीं देगी, क्योंकि सरकार की नीति की विफलता उजागर हो जाएगी।
- उपभोक्ता को भी ऐसे फोन के लिए ज्यादा कीमत चुकानी होगी।
- ऐसे में घटकों के उत्पादन में आए व्यवसायी नुकसान में ही रहेंगे। लाभ का सौदा उन्हीं के पास होगा, जो वैश्विक बाजार पर नजर रखते हुए, जोखिम लेते हुए स्मार्टफोन तैयार करें, भले ही उत्पादन न करें।
सरकार को तुरंत ही अपनी आयात प्रतिस्थापन नीति पर विचार करना चाहिए। वियतनाम जैसे देशों से सीख लेते हुए मुक्त व्यापार समझौतों की ओर कदम बढ़ाना चाहिए।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित अरविंद पनगढ़िया और दीपक मिश्रा के लेख पर आधारित। 15 सितंबर, 2021
Regional Comprehensive Economic Partnership (RCEP) क्या है?
13 फरवरी, 2022 से भारतीय विदेश मंत्री की मनीला की तीन दिवसीय यात्रा से पहले फिलीपींस ने यह निर्णय लिया है। भारत और फिलीपींस द्वारा जनवरी 2022 में 374.96 मिलियन अमरीकी डालर के समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद यह यात्रा निर्धारित की गई थी। इस सौदे के तहत भारत फिलीपींस को ब्रह्मोस मिसाइलों का निर्यात करेगा।
FFF द्वारा स्थिति पत्र
देश के Federation of Free Farmers (FFF) ने एक स्थिति पत्र जारी किया और किसानों और अन्य हितधारकों के साथ परामर्श की कमी के कारण देश की सीनेट से मुक्त व्यापार समझौते की सहमति को स्थगित करने का आग्रह किया। इसने प्रस्तावित RCEP नियमों पर भी चेतावनी दी जो “व्यापार उपायों की प्रभावशीलता और आवेदन में बाधा उत्पन्न करेंगे”।
क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी ( Regional Comprehensive Economic Partnership – RCEP )
RCEP ऑस्ट्रेलिया, ब्रुनेई, चीन, कंबोडिया, जापान, इंडोनेशिया, लाओस, दक्षिण कोरिया, म्यांमार, मलेशिया, फिलीपींस, न्यूजीलैंड, थाईलैंड, सिंगापुर और वियतनाम के एशिया-प्रशांत देशों के बीच एक मुक्त व्यापार समझौता है। RCEP के 15 सदस्य देशों में दुनिया की आबादी का लगभग 30% और वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का 30% हिस्सा है। इस प्रकार, RCEP इतिहास का सबसे बड़ा व्यापार ब्लॉक है। यह पहला मुक्त व्यापार समझौता है जिसमें चीन, जापान, इंडोनेशिया और दक्षिण कोरिया सहित एशिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएं शामिल हैं।
RCEP कब पेश किया गया था?
RCEP को पहली बार नवंबर 2011 में इंडोनेशिया के बाली में 19 वें आसियान शिखर सम्मेलन के दौरान पेश किया गया था। इसके लिए बातचीत 2013 की शुरुआत में शुरू हुई थी।
क्या भारत RCEP का सदस्य है?
मूल रूप से, भारत 2011 में RCEP मसौदा समिति का सदस्य था। हालाँकि, 2019 में, भारत ने कुछ चिंताओं का हवाला देते हुए समझौते से बाहर होने का निर्णय लिया। इन चिंताओं में घरेलू उद्योगों को आयात से उत्पन्न जोखिम भी शामिल था।
RCEP का उद्देश्य
इस मुक्त व्यापार समझौते का उद्देश्य आसियान सदस्य देशों और FTA भागीदारों को उत्पाद और सेवाएं उपलब्ध कराना है। यह 20 वर्षों में टैरिफ की सीमा को भी समाप्त कर देगा।