डॉलर ही क्यों

आख़िर डॉलर क्यों है ग्लोबल करेंसी?
जैसा की हम सभी जानते है कि इन दिनों भारत की करेंसी रुपया अपने अब तक के सबसे निचले स्तर पर आ गई है इसे पहले आज तक रुपया डॉलर के मुकाबले कभी इतना कमजोर नहीं हुआ। आज एक रुपये की कीमत 75 डॉलर हो गई है। हालांकि सिर्फ भारत ही नहीं दुनियाभर की कई करेंसी डॉलर के मुकाबले गिरी है जिसका एक मुख्य कारण तेल की बढ़ती कीमत और विश्व बाजार की स्थिति है।
लेकिन आज हम इस बारे में बात नहीं करने वाले है कि रुपया क्यों कमजोर हो रहा है या विश्व बाजार में ऐसी स्थिति क्यों पैदा हो रही है बल्कि आज हम इस बारे में जानकारी देने वाले है कि अमेरिका की करेंसी डॉलर को ही वैश्विक मुद्रा का दर्जा प्राप्त क्यों है यानी कि किसी भी देश की करेंसी को डॉलर के साथ ही क्यों मापा जाता है? क्या इसकी वजह ये है कि अमेरिका इस समय दुनिया का सबसे विकसित देश है या फिर कोई ओर वजह है चलिए आपको बताते है।
Why the Dollar is the Global Currency
आख़िर डॉलर क्यों है ग्लोबल करेंसी? – Why the Dollar is the Global Currency
डॉलर आज के समय में एक वैश्विक मुद्रा – Global Currency बन गई है। जिसकी एक बड़ी वजह ये है कि दुनियाभर के केंद्रीय बैंको में अमेरिकी डॉलर स्वीकार्य है। और रिपोर्टस की माने तो दुनियाभर में देशों के बीच दिए जाने वाले 39 फीसदी कर्ज डॉलर में ही दिए जाते है। हालांकि डॉलर को हमेशा से वैश्विक मुद्रा का दर्जा प्राप्त नहीं था।
साल 1944 से पहले गोल्ड को मानक माना जाता था। यानी की दुनियाभर के देश अपने देश की मुद्रा को सोने की मांग मूल्य के आधार पर ही तय करते थे। लेकिन साल 1944 में ब्रिटेन में वुड्स समझौता हुआ। जिसमें ब्रिटेन के वुड्स शहर में दुनियाभर के विकसित देशों की एक बैठक हुई जिसमें ये तय किया गया कि अमरीकी डॉलर के मुकाबले सभी मुद्राओँ की विनिमय दर तय की जाएगी।
ऐसा इसलिए क्योंकि उस समय अमेरिका के पास दुनिया में सबसे ज्यादा सोने के भंडार थे। जिस वजह से बैठक मे शामिल हुए दूसरे देशों ने भी सोने की जगह डॉलर को वैश्विक मुद्रा बनाने और डॉलर के अनुसार उनकी मुद्रा का तय करने की अनुमति दी।
हालांकि इसके बाद कई बार डॉलर की जगह दोबारा सोने को मानक मांग उठाने की आवाज उठी। जिसमें से पहली आवाज साल 1970 में उठी जिसमें कई देशों ने मांग रखी कि डॉलर की जगह सोने को मांग शुरु कर दी थी। क्योंकि वो मुद्रा स्फीति से लड़ना चाहते थे। उस समय के अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन ने स्थिति को देखते हुए डॉलर को सोने से ही अलग कर दिया था।
लेकिन डॉलर ही क्यों तब तक डॉलर विश्व बाजार में अपनी पहचान बना चुका था। जिसमें लोगों के लिए विनमय करना सबसे सुरक्षित था। यही कारण है कि आज के समय में दुनिया भर के केंद्रीय बैंको में 64 प्रतिशत मुद्रा डॉलर में है। हालांकि डॉलर के वैश्विक मुद्रा होने का एक मुख्य कारण ये भी है कि उसकी अर्थव्यवस्था इस समय दुनिया की सबसे मजबूत अर्थव्यवस्था है। अगर रिपोर्टस की बात करें तो इंटरनेशनल स्टैंडर्ड ऑर्गनाइजेंशन के अनुसार दुनियाभर में 185 करेंसियों का संचालन है।
लेकिन इनमें से ज्यादातर करेंसी केवल अपने देश तक ही सीमित है यानी की वो किसी ओर देश में नहीं चलती है। जिस कारण वैश्विक स्तर पर होने वाला 80 प्रतिशत व्यापार डॉलर में ही किया जाता है।
क्या डॉलर का कोई विकल्प है
डॉलर के बाद जो करेंसी दुनियाभर सबसे ज्यादा मान्य है वो है यूरो, ऐसा इसलिए क्योंकि अमेरिका की ही तरह यूरोपीय यूनियन भी दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थों में से एक है। दुनियाभर के केंद्रीय बैंको में डॉलर के बाद सबसे ज्यादा करेंसी यूरो है। बैंको में 19.9 प्रतिशत यूरो का भंडार है। साथ ही दुनियाभर के कई देशों यूरो को काफी इस्तेमाल किया जाता है।
हालांकि चीन और रुस जैसे बड़े देश भी अपनी करेंसी को वैश्विक करेंसी बनाने की पूर्जोर मेहनत कर रहे है। ऐसा इसलिए क्योंकि ऐसा होने से उनके देश की आर्थिक स्थिति ओर भी मजबूत हो जाएगी। जिस कारण चीन काफी समय से नई वैश्विक मुद्रा की मांग उठा रहा है। और शायद चीन आने वाले समय में कामयाब भी हो जाए क्योंकि साल 2016 में चीन की करेंसी यूआन दुनिया की डॉलर और यूरो के बाद एक ओर बड़ी करेंसी बनकर उभरी थी ।जिस वजह से चीन लगातार अपनी अर्थव्यवस्था को सुधारने में लगा हुआ हैं।
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कैसे मजबूत होता है रुपया और क्यों आती है गिरावट, जानिए
नई दिल्ली (बिजनेस डेस्क)। डॉलर में कमजोरी के कारण आखिर रुपए में मजबूती क्यों आती है? जितना मासूम यह सवाल है उतना ही मासूम इसका जवाब भी है। देश की आबादी में एक बड़ा हिस्सा रखने वाले छोटे बच्चे भी अक्सर ऐसे ही मासूम से सवाल अपनों से पूछ बैठते हैं। हम भी आपको बेहद आसानी से समझाने की कोशिश करेंगे कि आखिर डॉलर और रुपए के बीच चलने वाली उठापठक कैसे रुपए की हालत कभी पतली तो कभी मजबूत कर देती है।
रुपए ने पार किया 65 का स्तर, बढ़ गई लोगों की चिंताएं:
गुरुवार को जैसे ही रुपए ने 65 का स्तर पार किया निवेशकों के साथ साथ ऐसे लोगों की चिंताएं बढ़ गईं जिनका सरोकार अक्सर डॉलर के साथ होता है। मसलन अमेरिका जाने वालों को डॉलर चाहिए होता है, विदेश में पढ़ने वाले बच्चों को पैसे भेजने होते हैं जो कि रुपए के हिसाब से ही डॉलर में बदलते हैं। दोपहर तक रुपया 65 के बेहद करीब कारोबार करता रहा।
रुपए की हालत क्यों पतली करता है डॉलर?
रुपए की हालत पूरी तरह मांग एवं आपूर्ति और आयात एवं निर्यात पर निर्भर करती है। दरअसल हर देश के पास उन उन देशों का मुद्रा भंडार होता है जिनसे वो लेनदेन यानी सौदा (आयात-निर्यात) करता है। इसे सामान्य भाषा में विदेशी मुद्रा भंडार कहा जाता है। इसका डेटा आरबीआई की ओर से जारी किया जाता है। इसके घटने और बढ़ने से ही उस देश की मुद्रा की स्थिति बदलती रहती है। जैसा कि डॉलर को वैश्विक करेंसी का रुतबा प्राप्त है लिहाजा रुपए की स्थिति को इसी के सापेक्ष तौली जाती है। भारत अपनी जरूरत का करीब दो तिहाई कच्चा तेल विदेशों से आयात करता है। देश मोबाइल फोन और अन्य इलेक्ट्रॉनिक सामानों का भी बड़े पैमाने पर आयात करता है। कई कार कंपनियां अपनी कार के अधिकांश कल-पुर्जों के लिए आयात पर ही निर्भर होती हैं। दाल और खाद्य तेल भी बड़े पैमाने पर हमारे यहां आयात किए जाते हैं। इसलिए भारत के विदेशी मुद्रा भंडार से ज्यादा रकम बाहर चली जाती है, जबकि उसमें इजाफा उस अनुपात में नहीं होता है जिस अनुपात में वो बाहर जाता है।
उदाहरण से समझिए: भारत की अधिकांश डीलिंग डॉलर में होती है। अगर अब आप अपनी जरूरत का कच्चा तेल, खाद्य पदार्थ और इलेक्ट्रॉनिक्स आइटम्स अधिक मात्रा में मंगवाएंगे तो आपको ज्यादा डॉलर खर्च करने होंगे। इससे आपको सामान तो मिल जाएगा लेकिन आपका मुद्राभंडार थोड़ा कम हो जाएगा। मान लीजिए आप अमेरिका से कुछ डीलिंग कर रहे हैं। अमेरिका के पास 65,000 रुपए हैं और आपके पास 1000 डॉलर। डॉलर का रेट 65 है तो दोनों के पास फिलहाल समान राशि है। अब अगर आपको अमेरिका से भारत में कोई ऐसी चीज मंगानी है जिसकी कीमत आपकी करेंसी के हिसाब डॉलर ही क्यों से 6,500 रुपए है तो आपको इसके लिए 100 डॉलर चुकाने होंगे। यानी अब आपके भंडार में सिर्फ 900 डॉलर रह गए, लेकिन अमेरिका के पास पहुंच गए 71,500 रुपए, यानी अमेरिका के पास हमसे ज्यादा पैसे हो गए। यानी अमेरिका (विदेशी मुद्रा भंडार में) के पास भारत के जो 65,000 रुपए थे वो तो बने ही रहे, लेकिन भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में पड़े 100 डॉलर भी उसके पास पहुंच गए। अब भारत जब तक इतनी ही राशि यानी 100 डॉलर का सामान अमेरिका को नहीं दे देगा उसकी स्थिति कमजोर ही बनी रहेगी। यह स्थिति जब बड़े पैमाने पर होती है तो हमारे मुद्राभंडार में से रकम काफी तेजी से कमजोर होती है।
RBI क्यों कर रहा डॉलर की रिकॉर्डतोड़ बिक्री, महंगाई से इसका क्या है कनेक्शन?
रिजर्व बैंक के अनुसार 29 अप्रैल को विदेशी मुद्रा भंडार 2.695 अरब डॉलर गिरकर 597.73 अरब डॉलर रह गया है.
भारत में लगातार गिरते रुपये (Rupee Falling) और मजबूत होते डॉलर (Dollar) के बीच रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) ने मंगलवार, 17 मई को बताया कि रुपये को मजबूत बनाने के लिए मार्च डॉलर ही क्यों में 20.1 बिलियन डॉलर विदेशी मुद्रा बाजार में बेचे गए हैं. यानि 20 अरब डॉलर.
लेकिन डॉलर बेचने से रुपये को कैसे मजबूती मिलती है, ये समझते हैं.
पहले समझिए रुपया क्यों कमजोर हो रहा है?
लगातार गिरते रुपये का मुख्य कारण रूस-यूक्रेन युद्ध है जिसके अभी और लंबा चलने की आशंका है. इसके अलावा अमेरिका की फेडरल बैंक जो ब्याज दरें बढ़ा रहा है, उससे ग्लोबल ग्रोथ में सुस्ती आने का डर भी एक वजह बना है. क्रूड आयल की कीमतों में भी उछाल है ही.
इसके अलावा विदेशी निवेशक भारत के बाजार से पैसा निकाल रहे हैं, जिसकी वजह से भी डॉलर की डीमांड बढ़ रही है और परिणामस्वरूप रुपया कमजोर हो रहा है.
डॉलर बेचने से कैसे मजबूत हो सकता है रुपया?
केंद्रीय बैंक के पास बैंकिंग सिस्टम पर ध्यान रखने के अलावा महंगाई को नियंत्रण करने या बाजार में लिक्विडिटी मैनेज (करंसी सप्लाय) करने की जिम्मेदारी भी होती है. लिक्विडिटी मैनेजमेंट का मतलब ये है कि बाजार में कितनी नगदी होगी. रुपये को डॉलर के मुकाबले मजबूती देने के लिए आरबीआई स्पॉट मार्केट में डॉलर्स की बिक्री करती है. इस प्रक्रिया को डॉलर-रुपी स्वाप (Dollar-Rupee Swap) कहते हैं. नाम से ही मतलब साफ समझ आ रहा है. बाजार से भारी मात्रा में रुपया वापस लेकर डॉलर की सप्लाय करना.
आरबीआई इस प्रक्रिया के तहत डॉलर को भारतीय स्पॉट मार्केट में बेचता है. स्पॉट मार्केट वो व्यवस्था है जहां फाइनेंशियल इंस्ट्रुमेंट, करंसी को ट्रेड किया जाता है. स्पॉट मार्केट में जो भी ट्रेड होता है उसकी डिलिवरी भी जल्द से जल्द की जाती है. और यहां जिस दिन ट्रेड होता है उस दिन के प्राइस पर सेटलमेंट किया जाता है. RBI ये कदम 2008 में भी उठा चुका है.
आरबीआई जब बाजार में डॉलर्स बेच देता है तो उसके बदले बाजार का रुपया आरबीआई के पास आ जाता है. अब इससे दो फायदे होते हैं. पहला, जब बाजार में कम से कम रुपया बचेगा तो उसकी वैल्यू (कीमत) अपने आप बढ़ेगी. यानि रुपये को मजबूती मिलेगी. दूसरा, बाजार में जब पैसा कम होगा तो खर्च घटेगा यानि मांग घटेगी, और मांग घटना मतलब चीजों की कीमतों में गिरावट होना. इसकी वजह से महंगाई पर भी काबू पाया जा सकेगा.
बता दें कि आरबीआई को अपने रिजर्व में 600 बिलियन डॉलर रखने होते हैं. पिछले साल सितंबर 2021 में भारत के विदेशी मुद्रा भंडार अपने उच्चतम स्तर 642.51 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया था, जिसके बाद से इसमें लगातार गिरावट हो रही है. रिजर्व बैंक के अनुसार 29 अप्रैल को विदेशी मुद्रा भंडार 2.695 अरब डॉलर गिरकर 597.73 अरब डॉलर रह गया है.
RupeeVsDollar: डॉलर के मुकाबले गिरता रुपया, आम आदमी-अर्थव्यवस्था पर क्या असर?
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